Thursday, January 31, 2013

" ओशो अमृत पत्र : ईश्‍वर की पुकार से भरे प्राणों में ही संन्‍यास का अवतरण "


" प्रिय धर्म ज्‍योति,

प्रेम, संन्‍यास उस चित में ही अवतरित होता है,

जिसके लिए कि ईश्‍वर ही सब कुछ हो।

जहां ईश्‍वर ‘’सब कुछ’’ है,

वहां संसार अपने आप ही ‘’कुछ नहीं’’ हो जाता है।

किसी फकीर के पास ऐ कंबल था।

उसे किसी ने चुरा लिया है।

फकीर उठा और पास के थाने में जाकर चोरी की रिपोर्ट लिखवाई।

उसने लिखवाया कि उसका तकिया, उसका गद्दा,

उसका छाता, उसका पाजामा,उसका कोट और उसी तरह की बहुत सी चीजें चौरी हो गई है।

चोर भी उत्सुकतावश पीछे-पीछे थाने चला आया।

सूची की इतनी लम्‍बी-चौड़ी रूपरेखा देखकर वह मारे क्रोध के प्रकट हो गया,

और थानेदार के सामने कंबल फेंककर बोला।

बस यही, एक सड़ा गला कंबल था—इसके बदले इसने संसार भर की चीजें लिखा डाली।

फकीर ने कंबल उठाकर कहा—‘’आह, बस यही तो मेरा संसार है।‘’

फकीर ने कंबल उठाकर चलने को उत्‍सुक हुआ तो थानेदार ने उसे रोका,

और कहा कि रिपोर्ट में झूठी चीजें क्‍यों लिखवायी?

वह फकीर बोला—‘’ नहीं झूठ एक शब्‍द भी नहीं लिखवाया है। देखिए,

यहीं कंबल मेरे लिए सब कुछ है—यही मेरा तकिया है,

यहीं मेरा गद्दा है, यही मेरा छाता है, यहीं पाजामा,यहीं कोट है।

बेशक, उसकी बात ठीक ही थी।

जिस दिन ईश्‍वर भी ऐसे ही सब कुछ हो जाता है—तकिया,गद्दा, छाता,पाजामा, कोट—

उसी दिन संन्‍यास का अलौकिक फूल जीवन में खिलता है। "

~ रजनीश के प्रणाम


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