वह जो शब्द है, वर्ड है, लोगोस है,
वही असली नशा है. मुहम्मद साहब उसे सदा- ए - आसमानी कहते हैं, आबे हयात
कहते हैं, सोम रस वेद कहते हैं. वह हमारे भीतर है. वह नशा मिल जाए तो बाहर
का नशा फीका पड जाएगा. वहां तक आने के लिए साहस चाहिए.. रास्ते में बड़ी
बाधाये आती हैं.
कबीर साहब संत मत के उद्गम हैं, राम रस की इतनी खुली
चर्चा पहली बार कबीर ने की, संतो को नशे की पूरी टेक्नोलॉजी का ज्ञान है-
कहते हैं-
"गांजा, अफीम और पोस्ता, भांग और शराबे पिवता.
एक प्रेम रस चाखा नही, अमली हुआ तो क्या हुआ!!
प्रेम जब शुद्ध होता है तो ॐ बन जाता है.
संत रैदास जी कहते हैं- राम की शराब के लिए अपना सर देना होगा,अहंकार देना होगा.
धरम दास ॐ को अमृत कहते हैं- लोग अमृत की खोज बाहर करते हैं, वह अमृत यहि ॐ कार है. इसे पी कर तुम अमर हो जाते हो.
शून्य महल में अमृत बरसे..
प्रेम मगन होई साधु नहाए"
यह वर्षा भीतर के अन्तराकाश में होती है, तुम स्नान करके निहाल हो जाते हो.
नानक देव ने भरथरी से कहा- " बाबा ! मन मतवारो, नाम रस पीजे.
संत दादू कहते हैं- राम रस मीठा रे.. कोई पीवे संत सुजान.
सबको पीने को नही मिलता. कोई कोई पीता है.
इसी संसार में कृष्ण बांसुरी बजाते हुए जीते हैं और हम दुःख में.
दुनिया प्रभु की है मधुशाला..
सरल हो जाओ, सहज हो जाओ और फिर देखो राम रस बरसता है.
रज्जब कहते हैं- संतो मगन भया मन मेरा.
अहनिश सदा एक रस भरा
दिया दरीबे डेरा.
तुम जहा हो , दूकान में, या कही;; वही राम रस का आस्वादन कर सकते हो.
सुलतान पुर में नानक देव जी ने १४ साल काम किया और साधना भी की.
"कुल मर्याद सब मै त्यागी , बैठा भाठी डेरा."
वह भट्ठी भीतर है.
मै खाना ए वहदत में. साकी की इनायत से.
पीते ही पुकार उठा.. जो तू है ,, वही मै हूँ.
वह राम रस सबको नही मिलता... उसे मिलता है जो अपना सब कुछ संत को सौंप दे. अपना अहंकार सौंप दे.
"जन रज्जब तन. मन दिया.. होई धनि का चेरा"
वह हमेशा गुरु कृपा से ही मिलेगा.
अखंड कीर्तन जो हम बाहर करते हैं वह तो प्रतीकात्मक है- असली कीर्तन भीतर चल रहा है. जिसको संत देने को राजी हो जाता है रहस्य.. वही उसका भागी हो सकता है.
जब उस राम रस से ज्ञान हो जाय- तो आठो पहर पियो.
गुलाल साहब कहते है- "राम रस अमरा है भाई.
कोऊ साध सांगत दे पाई
बिन घोत्र बिन छाने पिए
रंग रसीले, चढात.. कभी न उतरे जाई."
"ऐसी मदिरा पीजे..
बैठ गुफा में अमरा बरसे.
चाँद सूर सैम कीजे."
तुलसी साहब- नाम अमल घट घोट न पीना.
पल्टू दास- अमल बिन अमली.. आठ पहर मस्ताना.
जिंदगी का भरोसा नही है, मेरी बातो को इमरजेंसी की तरह लो.
उमर खय्याम- इस फना के रास्ते में. जिंदगी है एक पडाव.
मुर्ख ही महसूस करते व्यर्थ में इससे लगाव
कूच करने को खड़े.. उसके हुकम की देर है
कौन पूछे गा यहाँ उडती हुई मिटटी का भाव.
याद रखना देर मत करो... चलो.. उठो .. जागो... और राम रस पियो.
______________________________ _________--
सद्गुरु ओशो सिद्धार्थ जी.
"गांजा, अफीम और पोस्ता, भांग और शराबे पिवता.
एक प्रेम रस चाखा नही, अमली हुआ तो क्या हुआ!!
प्रेम जब शुद्ध होता है तो ॐ बन जाता है.
संत रैदास जी कहते हैं- राम की शराब के लिए अपना सर देना होगा,अहंकार देना होगा.
धरम दास ॐ को अमृत कहते हैं- लोग अमृत की खोज बाहर करते हैं, वह अमृत यहि ॐ कार है. इसे पी कर तुम अमर हो जाते हो.
शून्य महल में अमृत बरसे..
प्रेम मगन होई साधु नहाए"
यह वर्षा भीतर के अन्तराकाश में होती है, तुम स्नान करके निहाल हो जाते हो.
नानक देव ने भरथरी से कहा- " बाबा ! मन मतवारो, नाम रस पीजे.
संत दादू कहते हैं- राम रस मीठा रे.. कोई पीवे संत सुजान.
सबको पीने को नही मिलता. कोई कोई पीता है.
इसी संसार में कृष्ण बांसुरी बजाते हुए जीते हैं और हम दुःख में.
दुनिया प्रभु की है मधुशाला..
सरल हो जाओ, सहज हो जाओ और फिर देखो राम रस बरसता है.
रज्जब कहते हैं- संतो मगन भया मन मेरा.
अहनिश सदा एक रस भरा
दिया दरीबे डेरा.
तुम जहा हो , दूकान में, या कही;; वही राम रस का आस्वादन कर सकते हो.
सुलतान पुर में नानक देव जी ने १४ साल काम किया और साधना भी की.
"कुल मर्याद सब मै त्यागी , बैठा भाठी डेरा."
वह भट्ठी भीतर है.
मै खाना ए वहदत में. साकी की इनायत से.
पीते ही पुकार उठा.. जो तू है ,, वही मै हूँ.
वह राम रस सबको नही मिलता... उसे मिलता है जो अपना सब कुछ संत को सौंप दे. अपना अहंकार सौंप दे.
"जन रज्जब तन. मन दिया.. होई धनि का चेरा"
वह हमेशा गुरु कृपा से ही मिलेगा.
अखंड कीर्तन जो हम बाहर करते हैं वह तो प्रतीकात्मक है- असली कीर्तन भीतर चल रहा है. जिसको संत देने को राजी हो जाता है रहस्य.. वही उसका भागी हो सकता है.
जब उस राम रस से ज्ञान हो जाय- तो आठो पहर पियो.
गुलाल साहब कहते है- "राम रस अमरा है भाई.
कोऊ साध सांगत दे पाई
बिन घोत्र बिन छाने पिए
रंग रसीले, चढात.. कभी न उतरे जाई."
"ऐसी मदिरा पीजे..
बैठ गुफा में अमरा बरसे.
चाँद सूर सैम कीजे."
तुलसी साहब- नाम अमल घट घोट न पीना.
पल्टू दास- अमल बिन अमली.. आठ पहर मस्ताना.
जिंदगी का भरोसा नही है, मेरी बातो को इमरजेंसी की तरह लो.
उमर खय्याम- इस फना के रास्ते में. जिंदगी है एक पडाव.
मुर्ख ही महसूस करते व्यर्थ में इससे लगाव
कूच करने को खड़े.. उसके हुकम की देर है
कौन पूछे गा यहाँ उडती हुई मिटटी का भाव.
याद रखना देर मत करो... चलो.. उठो .. जागो... और राम रस पियो.
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सद्गुरु ओशो सिद्धार्थ जी.
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