Saturday, December 22, 2012

रजनीश का प्रणाम

प्‍यारी साधना,
प्रेम। 

पूछा है तूने: मन स्‍थिति संन्‍यासी की
और परिस्थिति गृहस्‍थी की—इनमें मेल कैसे करें?
मेल तू करना ही नहीं—वह कठिन कार्य प्रभु पर ही छोड़।
संसार और स्‍वयं का भी उसने मेल किया है—शरीर और आत्‍मा का भी।
उसके लिए तो जैसे कहीं द्वंद्व है ही नहीं।
द्वंद्व अज्ञान में ही है।
ज्ञान में द्वंद्व नहीं है।
इसलिए अज्ञान में मेल बिठाना पड़ता है,
फिर भी बैठता नहीं—बैठ सकता ही नहीं है।
और ज्ञान में मेल बैठ जाता है,
क्‍योंकि विपरीत संभव ही नहीं है।
तू मेल बिठाने में मत पड़ना—अन्‍यथा
स्‍थिति और बेमेल हो जाएगी।
तू बेमेल को स्‍वीकार कर ले
और प्रार्थना पूर्वक जीती चल।
फिर किसी दिन पाएगी की बेमेल कहीं है ही नहीं।
स्‍वीकृति उसकी मृत्‍यु है।
रजनीश का प्रणाम

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