Saturday, December 22, 2012

प्रकृति उसका द्वार है : परमात्मा

प्रकृति परमात्मा का प्रगट रूप है...
परमात्मा है आत्मा तो प्रकृति है शारीर ...
परमात्मा है प्रेमी तो प्रकृति है प्रेयसी ...
परमात्मा है गायक तो प्रकृति है गीत ...
परमात्मा है वादक तो प्रकृति है उसका वादन ...
और परमात्मा है नर्तक तो प्रकृति उसका निरत्य ...
जिसने प्रकृति को न पहिचाना, उसे परमात्मा की कोई याद न कभी आई है और न कभी आएगी ...
जिसने प्रकृति को दुत्कारा, जिसने प्रकृति को इनकारा,
वह परमात्मा से इतना दूर हो गया कि जुड़ना असंभव है ...
फूलों में अगर उसकी झलक न मिली, तो पत्थर कि मूर्तियों में न मिलेगी ...
चाँद तारों में अगर उसकी रौशनी न दिखी, तो मंदिर में आदमी के हाथों से जलाई हुई आरतियाँ और दीये, क्या ख़ाक रौशनी दे सकेंगी ...
और हवाएं जब गुज़रती हैं वृक्षों से उनके गीत में अगर पग-ध्वनि न सुनाई पड़ी, तो तुम्हारे भजन और तुम्हारे कीर्तन सब व्यर्थ हैं ...
प्रकृति से पहला नाता बनता है भक्त का ...
प्रकृति से पहला नाता, फिर परमात्मा से जोड़ हो सकता है ...
प्रकृति उसका द्वार है, उसका मंदिर है...
तुम परमात्मा को तो चाहते रहे हो , लेकिन प्रकृति को इनकार करते रहे हो ...
इसी लिए परमात्मा चाह भी गया, इतना, सदियों सदियों तक, और पाया भी नहीं गया ....

~ ओशो

पन्डित बा !

धन भेला गर या ज्ञान
के फरक पर्छ र पन्डित बा ?
न धन उस्को
न ज्ञान तिम्रो |

वेद,उपनिशद
शास्त्र,पुराण कन्ठस्थ छ |
के फरक पर्छ र पन्डित बा ?
अलिक बडी शब्द सङ्रह गर्ने सुँगा बन्नु न हो |

संसार को हिसाब गर या शास्त्रको |
के फरक पर्छ र पन्डित बा ?
दुबै ब्यपार बनेपछी|
जगत पैसा,प्रतिस्ठा
काठमाडौं, वासिङ्टनको हिसाब लाउँछ |
तिमी दक्षिणा,अध्याय,श्लोक
स्वर्ग,नर्क अनी बैकुन्ठको |
वासिङ्टन होस् या बैकुन्ठ
के फरक पर्छ र पन्डित बा ?
आखिर लोभ न हो |

हामी एकै सिक्का का दुई पाटा हौ |
दाँयाको होस् या बाँयाको
के फरक पर्छ र पन्डित बा ?
म आइन्स्टाईन,शेली साकिराको कुरा गर्छु |
तिमी बिदुर,बाल्मिकी अनी उर्बसी का कुरा गर्छौ |
आफ्नो भन्न त प्रज्ञा चाहिन्छ |

जन्जिर सुनको होस् वा फलामको,
के फरक पर्छ र पन्डित बा ?
दुबैले बांधेपछी,
बजार ले बाधोस् कि मन्दिरले |

स्याललाई बाघको खाल ओडाउदैमा,
के फरक पर्छ र पन्डित बा ?
संस्कारका लेपहरु उप्काएर
आसक्तिका जुकाहरु सल्बलाएको हेर्न त,
प्रेमको झरिमा नुहाउँन सक्नु पर्छ |

दुर्गन्ध को डङुरमा बसेर
अहङ्कारको सुइरोले स्नायु घोच्न छाड पन्डित बा |
तिम्रो नाक बेकम्मा बनेको छ |
चटकेले टाँसेको नाक जस्तो,
तिम्रा आँखा,कान बुख्याँचाका जस्ता भएका छन् |

आँखा,कान, नाक त मेरा पनी छन्
के फरक पर्छ र पन्डित बा ?
हामी आँखा,कान अनी नाक भएका
अन्धा,बहिरा र नकटा हौ |

आफुँ त बुझ पहिला आफुँलाई |
जगतलाई खै के बुझाउँछौ ?
अलिकती त सरम खाउँ न,
अझ,किन नसुने झै गर्छौ |
हँ पन्डित बा ??? ||

स्वमी ध्यान गंगा(biku)

I feel alone, which is good, but I am confused.

I feel alone, which is good, but I am confused. I don’t know what is happening. Things are changing around inside me so sometimes I feel frightened, sometimes there is a floating feeling.

It is natural. Whenever you feel frightened, just relax. Accept the fact that fear is there, but don’t do anything about it. Neglect it; don’t pay any attention to it. Watch the body. There should not be any tension in it. If tension doesn’t exist in the body, the fear disappears automatically. Fear makes a certain tense state in the body, to get rooted in it. If the body is relaxed, fear is bound to disappear. A relaxed person cannot be scared. You cannot frighten a relaxed person. Even if fear comes, it will come like a wave...it will not get roots.

Fear coming and going like waves and you remaining untouched by it, is beautiful. When it gets rooted in you and starts growing in you, then it becomes a growth, a cancerous growth. Then it cripples your inner organism.

So whenever you feel frightened, the one thing to look at is that the body should not be tense. Lie down on the floor and relax — relaxation is the antidote for fear — and it will come and go. You simply watch.

That watching should not be of interest — indifferent. One just accepts that it’s okay. The day is hot; what can you do? The body is perspiring...one has to pass through it. The evening is coming close, and a cool breeze will be blowing.... So just watch it and be relaxed.

Once you have the knack of it, and you will have it soon — that if you are relaxed, fear cannot get attached to you, that it comes and goes and leaves you unscarred — then you have the key. And it will come. It will come because the more we change, the more fear will be coming.

Every change creates fear, because every change is putting you into the unfamiliar, into a strange world. If nothing changes and everything remains static, you will never have any fear. That means, if everything is dead, you will not be afraid.

For example, you are sitting down and there is a rock Lying down. There is no problem: you will look at the rock, and everything is okay. Suddenly the rock starts walking; you become frightened. Aliveness! Movement creates fear; and if everything is unmoving, there is no fear.

That’s why people, afraid of getting into fearful situations, arrange a life of no change. Everything remains the same and a person follows a dead routine, completely oblivious that life is a flux. He remains in an island of his own making in which nothing changes. The same room, the same photographs, the same furniture, the same house, the same habits, the same slippers — everything the same. The same brand of cigarettes; even a different brand you won’t like. Between this, amidst this sameness, one feels at ease.

People live almost in their graves. What you call a convenient and comfortable life is nothing but a subtle grave. So when you start changing, when you start on the journey of inner space, when you become an astronaut of the inner space, and everything is changing so fast, every moment is trembling with fear. So more and more fear has to be faced.

Let it be there. By and by you will start enjoying the changes so much that you will be ready at any cost. Change will give you vitality...more aliveness, zest, energy. Then you will not be like a pond...closed from everywhere, not moving. You will become like a river flowing towards the unknown, and towards the ocean where the river becomes lost.

Osho,
Be Realistic: Plan for a Miracle

Meaning of मन्त्र

असतोमा सद्गमय। तमसोमा ज्योतिर् गमया।
मृत्योर्मामृतं गमय॥ ॐ शांति शांति शांति - बृहदारण्यक उपनिषद् 1.3.28.

"Aum Asato mā sad gamaya
Tamaso mā jyotir gamaya
Mṛtyormā amṛtam gamaya
Aum śānti śānti śāntiḥ "

meaning of which is -

"From ignorance, lead me to truth;
From darkness, lead me to light;
From death, lead me to immortality
Aum peace, peace, peace " 


जतु पहारा धीरजु सुनिआरु। अहरणि मति वेद हथिआरु ।।
भउ खला अगिन तपताउ। भांडा भाउ अमृत तितु ढालि ।।
घड़ीए सबदु सची टकसालु। जिन कउ नदरि करमु तिन कार।।
'नानक' नदरी नदरि निहाल।।

एक-एक शब्द समझने जैसा है: 'संयम भट्टी है, धीरज सुनार है, बुधि नहाई है, और ज्ञान हथौड़ा है। भय
ही घौंकनी है और तपस्या अग्नि है। भाव ही पात्र है, जिसमें अमृत ढलता है। सत्य के टकसाल में शब्द का
सिक्का गढ़ा जाता है। जिन पर उसकी कृपा-दृष्टि होती, वे ही यह कर पाते हैं । नानक कहते हैं , वे उस कृपा-
दृष्टि से निहाल हो उठते हैं ।'
ओशो ( एक ओंकार सतनाम )

♥ Osho ♥

As a child
just be as simple  as a child.
Just be again a child as you were born,
as God sent you into this world.
In that mirror like state
you will be able
to reflect that which is.
Innocence is the door to knowing.
Knowledge is the barrier
and innocence is the bridge.


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Real worship 
Real worship consists of living.
Real worship consists of small things.
A religious man lives day to day,
moment to moment.
Cleaning the floor and there is worship.
Preparing food and there is worship.
Worship is a quality- 

it has nothing to do
with the act itself,
it is the attitude
that you bring to the act.
Recognize! See!
And there is worship!






The Zen people say:
"If you meet Buddha
on the way, kill him!"
And they worship Buddha,
and still they say:
"If you meet Buddha
on the way, kill him!"
They are simply saying
what Buddha himself
has said.
Buddha
insisted his whole life:
Don't follow...Understand!
Imbibe my spirit,
but don't
follow my character,
which is going to be unique,
because no other individual
has ever been there
who is like you
and no other individual
will ever be there
who can be like you.
You are unique!
Don't become imitators.
But that's what happens
people become followers.
Don't follow...Understand!

Never get hooked
by "ifs" and "buts".
Make life simple
and without
"ifs" and "buts"
life is very simple.
"Ifs" and "buts"
create
great complexity.
Because
we create our life
through thinking:
if you say "if"
then there
will be an "if";
you are projecting it.
Don't project
hesitations......
Man creates
his own world
by thinking about it
continuously.
 

रजनीश का प्रणाम

प्‍यारी साधना,
प्रेम। 

पूछा है तूने: मन स्‍थिति संन्‍यासी की
और परिस्थिति गृहस्‍थी की—इनमें मेल कैसे करें?
मेल तू करना ही नहीं—वह कठिन कार्य प्रभु पर ही छोड़।
संसार और स्‍वयं का भी उसने मेल किया है—शरीर और आत्‍मा का भी।
उसके लिए तो जैसे कहीं द्वंद्व है ही नहीं।
द्वंद्व अज्ञान में ही है।
ज्ञान में द्वंद्व नहीं है।
इसलिए अज्ञान में मेल बिठाना पड़ता है,
फिर भी बैठता नहीं—बैठ सकता ही नहीं है।
और ज्ञान में मेल बैठ जाता है,
क्‍योंकि विपरीत संभव ही नहीं है।
तू मेल बिठाने में मत पड़ना—अन्‍यथा
स्‍थिति और बेमेल हो जाएगी।
तू बेमेल को स्‍वीकार कर ले
और प्रार्थना पूर्वक जीती चल।
फिर किसी दिन पाएगी की बेमेल कहीं है ही नहीं।
स्‍वीकृति उसकी मृत्‍यु है।
रजनीश का प्रणाम

निश्चय ही मैंने तुम्हें कोई मंत्र नहीं दिया।

निश्चय ही मैंने तुम्हें कोई मंत्र नहीं दिया। नहीं चाहता कि तुम्हारा मन बचे। तुमसे मंत्र छीन रहा हूं। तुम्हारे पास वैसे ही मंत्र बहुत हैं। तुम्हारे पास मंत्रों का तो बड़ा संग्रह है। वही तो तुम्हारा सारा अतीत है। बहुत तुमने सीखा। बहुत तुमने ज्ञान अर्जित किया। कोई हिंदू है, कोई मुसलमान है, कोई जैन है, कोई ईसाई है। किसी का मंत्र कुरान में है, किसी का मंत्र वेद में है। कोई ऐसा मानता, कोई वैसा मानता। मेरी सारी चेष्टा इतनी ही है कि तुम्हारी सारी मान्यताओं से तुम्हारी मुक्ति हो जाए। तुम न हिंदू रहो, न मुसलमान, न ईसाई। न वेद पर तुम्हारी पकड़ रहे, न कुरान पर। तुम्हारे हाथ खाली हो जायें। तुम्हारे खाली हाथ में ही परमात्मा बरसेगा। रिक्त, शून्य चित्त में ही आगमन होता परम का; द्वार खुलते हैं।

तुम मंदिर हो। तुम खाली भर हो जाओ तो प्रभु आ जाए। उसे जगह दो। थोड़ा स्थान बनाओ। अभी तुम्हारा घर बहुत भरा है--कूड़े-कर्कट से, अंगड़-खंगड़ से। तुम भरते ही चले जाते हो। परमात्मा आना भी चाहे तो तुम्हारे भीतर अवकाश कहां? किरण उतरनी भी चाहे तो जगह कहां? तुम भरे हो। भरा होना ही तुम्हारा दुख है। खाली हो जाओ! यही महामंत्र है। इसलिए मैंने तुम्हें कोई मंत्र नहीं दिया, क्योंकि मैं तुम्हें किसी मंत्र से भरना नहीं चाहता। मन से ही मुक्त होना है। लेकिन अगर मंत्र शब्द से तुम्हें बहुत प्रेम हो और बिना मंत्र के तुम्हें अड़चन होती हो, तो इसे ही तुम बता दिया करो कि मन से खाली हो जाने का सूत्र दिया है; साक्षी होने का सूत्र दिया है।
Osho: the loving master of hearts

स्वयमसँग सोध , "म को हुँ ?" ओशो

" म को हुँ? " जसले स्वयमलाई यो प्रश्न सोध्दैनन, उसको लागि ज्ञानको द्धार बन्द नै रहिरहन्छ। त्यो द्धार खोल्ने कुन्जी नै यही हो। स्वयमलाई सोध कि "म को हुँ?" र जसले प्रबलता र समग्र रुपमा सोध्छन, उसले स्वयमबाट नै उत्तर पनि पाउदछ।
कारलाइल बुढा भैइसकेको थियो। उसको शरीरले अस्सी वसन्त पार गरिसकेको थियो। र जुन शरीर कुनै समयमा धेरै सुन्दर र स्वस्थ थियो, त्यो शरीर अब जर्जर थिल्थिलो भैइसकेको थियो। जीवन अस्ताउनको लागि लक्षण प्रकट हुन लगिसकेको थियो। यस्तै बुढेसकालको एका बिहानको घटना हो। कारलाइल स्नानकक्षमा थियो, स्नान गरिसकेपछी जब शरीरलाई पुछ्दै थियो, उसले अचानक देख्यो कि त्यो शरीर त पहिल्यै काचुली फेरिसकेको रहेछ, जसलाई कि ऊ आफ्नो ठानि बसेको थियो! शरीर त पुरै नै बदलीसकेको थियो। त्यो काया अब कहाँ छ जस्लाई उसले प्रेम गरेको थियो? जस माथि उसले गौरब गरेको थियो, त्यसको ठाउमा अब यो जरजर र खन्डहर मात्र बाँकी थियो, र साथसाथै एक अत्यन्त अभिनव-बोध पनि उसको भित्र प्रखर रुपमा दुरुस्तै थियो। "शरिर त त्यही थिएन, तर ऊ त उही नै थियो। त्यो त परिवर्तन भएको थिएन। र उसले स्वयम सँग सोधेको थियो, " आह!! त्यसो भए "म को हुँ?"
यही प्रश्न प्रत्येकले आँफैसँग सोध्नु पर्दछ। यो नै असली प्रश्न हो। प्रश्नहरुको प्रश्न नै यही हो। जो यो प्रश्न आँफैलाई सोध्दैनन, उसले केही पनि सोध्दैन, र उत्तर कहाँ बाट पाओस्?
सोध!! आफ्नो अन्तरतमको गहराइसम्म यो प्रश्नलाई गुँजिन देउ, "म को हुँ?"
जब प्राण देखी नै पुरै शक्ती लगाएर जसले सोध्छ, तब अवश्य नै उत्तर उपलब्ध हुन्छ। र, यो उत्तर जीवनको सारा दिशा र अर्थलाई परिवर्तित गरिदिन्छ। यो भन्दा पूर्व मान्छे अन्धो सरह छ। यो उत्तर पछी मात्र उसले सहि मात्रामा आँखा खोल्दछ। 
(ओशो के पत्र-संकलन ‘पथ के प्रदीप’ से)

What’s Sex Got To Do With It?

If you repress sex you will become angry; the whole energy that was becoming sex will become anger. And it is better to be sexual than to be angry. In sex at least there is something of love; in anger there is
only pure violence and nothing else. If sex is repressed, the person becomes violent — either to others he will be violent, or to himself. These are the two possibilities: either he will become a sadist and will torture others, or he will become a masochist and will torture himself. But torture he will.

Do you know, down the ages, the soldiers have not been allowed to have sexual relationships? Why? Because if soldiers are allowed to have sexual relationships they don’t gather enough anger in them, enough violence in them. Their sex becomes a release, they become soft, and a soft person cannot fight. Starve the soldier of sex and he is bound to fight better. In fact, his violence will be a substitute for his sexuality….

I pulled back my sexual longings,
and now I discover that I’m angry a lot.
(Kabir)

A great observer he is, a very minute observer. This is what awareness is. He is watching: he represses his sexual desire and watches — “Now what is happening inside?” Soon he finds that he becomes more angry — for no reason at all, just angry, irritated, ready to fight with anybody, any excuse will do.

And remember, sex can be transformed because it is a natural energy; anger is not so natural, one step removed from nature. Now it will be difficult to change anger. First anger will have to be changed into sex, only then can anything be done — that’s what my work here is. And that’s what I am being condemned for all over the world.

I am trying to change your anger into sex — first that has to be done. That is the way of inner change. First all your perversions have to disappear, and you have to become a natural human being. You have to become a natural animal, to be exact. And then only can you become divine. The animal can be transformed into the divine, but your animal is also very perverted, your animal is not sane — your animal has become insane. First the insanity has to be transformed, changed. Change anger!

I gave up rage, and now I notice
that I am greedy all day.

So he repressed his anger — that’s what one will logically do. You repress sex, anger bubbles up; you repress anger. But he is a close observer, a very minute observer. He says: The moment I repressed my anger I became greedy.

This too is proved: if you watch human history you will find a thousand and one proofs for it. For example, in India Mahavira taught non-violence, and the result has been that all the followers of Mahavira became the most greedy people in the world — they are the Jews of India. The Jainas are the Jews of India. Why did they become so greedy?

Mahavira taught them to be non-violent. Obviously, they started repressing anger; that is the only way that seems possible to the stupid mind: Repress anger! Don’t be violent. And they tried really hard; in every possible way they tried not to be violent. They even stopped agriculture because it is a kind of violence: you will have to pull the plants and cut the crop, and that is violence because plants have life. So Jainas stopped agriculture completely.

Now, they cannot go to the army, they cannot be kshatriyas — they cannot become warriors — because of their ideology of non-violence, and they cannot even be agriculturalists, gardeners; that is impossible. They would not like to become sudras — the untouchables — who clean the roads, the sweepers and the cobblers, because that is too humiliating. And brahmins won’t allow them to function as brahmins — brahmins are very jealous about that. They have been in power for centuries and they don’t allow anybody: nobody can become a brahmin; one has to be a brahmin only by birth. You may become a great, learned man — that doesn’t matter — but you can’t be a Brahmin. There is no way of becoming a brahmin; you have to be born one only. You have to be very careful when you choose your parents; that is the only opportunity to become a brahmin.

So Jainas could not be brahmins, would not like to become sudras were not able to become warriors — then what was left for them? Only business — they became business people. And all their repressed anger became their greed. They became great money-maniacs. Their number is very small; in India their number is so small, not more than thirty lakhs. In a country of sixty crores thirty lakhs is nothing. But they possess more money than anybody else. You will not find a Jaina beggar anywhere; they are all rich people.

Mahavira wanted them to be non-violent, and what really happened was totally different: they became greedy. Repress your anger and you will be greedy….

I worked hard at dissolving the greed,
and now I am proud of myself.

So he repressed his greed and the ultimate result is: he has become a great egoist; he finds himself being very proud. “Look! I have repressed sex, repressed anger, repressed greed — I have done this, I have done that. I have done impossible things!” Now a great ‘I’ arises, the ego becomes strengthened.

That’s why you will find the most crystallized egos in the monks and the nuns. You will not find such crystallized egos anywhere else. The more a person renounces, the more he represses, the more egoistic he becomes. Indians are very egoistic and the reason? — they have all tried in some way or other to be religious. And the only way seems to be repression — and repression brings ego.

A non-repressed person becomes a non-egoist; he cannot carry the ego. There is no prop to support it. He becomes humble, he becomes simple, he becomes ordinary, he has no claim — he knows he is nothing. This whole process that Kabir is describing is beautiful.

Repression is not the way: transformation is the way. Don’t repress anything. If sexuality is there, don’t repress it otherwise you will create a new complexity — which will be more difficult to tackle. And if you repress anger, greed is even more difficult then, and if you repress greed, arises ego, pride, which is the most difficult thing to drop.

Move back: from pride to greed, from greed to anger, from anger to sex. And if you can come to the natural, spontaneous sexuality, things will be very simple. Things will be so simple that you cannot imagine. Then your energy is natural, and natural energy creates no hindrance in transformation. Hence I say: from sex to super consciousness. Not from anger, not from greed, not from ego, but from sex to super consciousness.

The transformation can happen only if first you accept your natural being. Whatsoever is natural is good. Yes, more is possible, but the more will be possible only if you accept your nature with totality — if you welcome it, if you have no guilt about it. To be guilty, to feel guilty, is to be irreligious. In the past you have been told just the opposite: Feel guilty and you are religious. I say to you: Feel guilty and you will never be religious. Drop all guilt!

You are whatsoever God has made you. You are whatsoever existence has made you. Sex is not your creation: it is God’s gift. Something tremendously valuable is hidden in it — it is just a shell of your samadhi. If the seed is broken, the shell is broken, the flower will bloom — but not by repression. You will have to learn inner gardening, you will have to become a gardener, you will have to learn how to use dirty fertilizers, manure, and transform manure into roses.

Religion is the most delicate art.

OSHO, The Fish in the Sea Is Not Thirsty, Talk #13

Tuesday, December 4, 2012

P E R S O N A L I T Y

"The first layer of your personality is the most superficial — the layer of formalities, socialites. It is needed; nothing is wrong in it. You meet a person on the road, you know the person, if you don't say anything, and he also doesn't say anything, no social formality is fulfilled, you both feel embarrassed. Something has to be done. Not that you mean it, but it is a social lubricant; so the first layer I call: THE LAYER OF THE LUBRICANT. It helps smoothness. It is the layer of: Good morning; How are you? Great! Fine! Nice weather! Well, be seeing you; this layer. This is good! Nothing is wrong in it. If you use it, it is beautiful. But if you are used by it, and you have become frozen in it, and you have lost all contact with your innermost being, you never move beyond this, then you are stuck, you are sick-minded.
The second layer is of roles and games. The first layer has no contact with life, the second layer sometimes can have glimpses. In the second layer are: I am the husband, you are the wife; or, I am the wife, you are the husband; I am the father, you are the child; I am the President of the United States, the Queen of England, or Chairman Mao Tse tung, Adolf Hitler, Mussolini, all the politicians of the world — they live on the second, the layer of role playing.
It is a play; one has to play many roles but one need not become fixed in any role. And, one should remain always free of all roles; roles should be like clothes — you can any time jump out of them. If that capability is retained, you are not stuck, then you can play a role — nothing is wrong in it. As far as it goes it is beautiful, but if it becomes your life and you don't know anything beyond, then it is dangerous. Then you go on playing a thousand and one games in life and you never come in contact with life. Fritz Perls calls it the layer of BULLSHIT.
Then there is a third layer: the layer of chaos. Because of this third layer people are afraid to move inwards; that's why they get stuck in the second layer.
In the second layer everything is clean, clear. The rules are known, because every game has its rules. If you know the rules, you can play the game. Nothing is mysterious in the second layer. Two plus two always make four in the second layer — not so in the third. The third is not like the second, it is chaos: tremendous energy, with no rules! You become afraid. The third layer gives you fear.
That's why when you start meditating, and you fall from the second layer to the third, you feel chaos. Suddenly, you don't know who you are! The world of who is who, is the second, the bullshit layer. If you want to know about the second go and consult the book WHO'S WHO? They are published all over the world. The names of the people there are of the second layer.
In the third layer suddenly you become aware that you don't know who you are! Identity is lost, rules disappear, tremendous chaos, a vast ocean in-a storm; beautiful if you can understand. If you cannot understand: very very terrible. This third layer, if understood well, and if you can remain mindful in it, will give you the first glimpse, the first vital glimpse of life. Otherwise you will go neurotic.
If one can remain alert in the third layer, aware, meditative — that chaos turns into a cosmos. It is chaos because you are not centered, not aware. If you are aware it becomes a cosmos, an order; and not the order of human rules — the order of Tao, the order of what Indians have called the DHARMA, DHAMMA, RIT; the ultimate order, not man made.
And, if you remain alert, the chaos is there but you are not in the chaos, you transcend it — awareness is a transcending phenomenon. You know all around is chaos, but deep within you there is no chaos. Suddenly you are above it, you are not lost in it.
Then, there is the fourth layer. If you pass the third, only then can you enter the fourth. If you have faced chaos, if you have faced the anarchy of the inner world, then you become capable of entering the fourth.
The fourth is the death level, the death plane. After the chaos one has to face death — the chaos prepares you.
On the fourth, if you reach, you will have a sudden feeling of dying — you are dying. In deep meditation when you touch the fourth you start feeling that you are dying. Or — because meditation is not such a universal experience — in deep sexual orgasm also you feel that you are dying.
The fifth is the layer of life. Energy becomes absolutely free, with no blocks. You are free to be whatsoever you want to be. To move, not to move: to act, not to act; whatsoever; you are absolutely free. Energy becomes spontaneous.
These are the five layers. You have to go backwards, to the original source. That's what Patanjali calls PRATYAHARA, coming back to the original state. That's what Mahavir has called PRATIKRAMANA, coming back, falling back to your originality. That's what Christ has called CONVERSION; becoming again a child.
Then, when all layers of your onion are peeled off — it is an arduous thing; even to peel an ordinary onion is difficult, tears will come to your eyes, and when you peel the onion of your own personality, many tears will be there; it is hard, it is arduous, but it HAS to be done, otherwise you live a false life, and you live a sick life."
— OSHO, Tao - The Three Treasures, Vol 4, Chapter #5

पापा तुम घर कब आओगे...?

पापा तुम घर कब आओगे...?

मम्मी मुझको रोज बताती
चंदा मामा भी दिखलाती
क्यों रहते तुम चंदा पास
नहीं आती क्या मेरी याद?

दादी भी मुझको बहकाती
भगवन की बात सुनती
खेल रहे तुम उसके साथ
नहीं आती क्या मेरी याद ?

पापा तुम जल्दी आ जाओ
वर्ना मैं खुद आ जाउंगी
भगवान से बात करुँगी
तुमको घर मैं ले आउंगी |

पापा तुम जब घर आओगे
मैं संग आपके खेलूंगी
खाना खाऊँ,दूध पीउंगी
कभी नहीं मैं रोऊँगी |

रात को मम्मी जब सोती है
बिस्तर में चुप-चुप रोती है
करती वह जब तुमसे बात
आती मुझको आपकी याद |

डॉ अ कीर्तिवर्धन
८२६५८२१८००

पहली बात कि आँख के बाबत कुछ समझना जरूरी है।

‘आँख की पुतलियों को पंख की भांति छूने से उनके बीच का हलकापन ह्रदय में खुलता है। और वहां ब्रह्मांड व्‍याप्त हो  जाता है।’

विधि में प्रवेश के पहले कुछ भूमिका की बातें समझ लेनी है। पहली बात कि आँख के बाबत कुछ समझना जरूरी है। क्‍योंकि पूरी विधि इस पर निर्भर करती है।

पहली बात यह है कि बाहर तुम जो भी हो या जो दिखाई पड़ते हो वह झूठ हो सकता है। लेकिन तुम अपनी आंखों को नहीं झुठला सकते। तुम झूठी आंखें नहीं बना सकते हो। तुम झूठा चेहरा बना सकते हो। लेकिन झूठी आंखें नहीं बना सकते। वह असंभव है। जब तक कि तुम गुरजिएफ की तरह परम निष्‍णात हीन हो जाओ। जब तक तुम अपनी सारी शक्‍तियों के मालिक न हो जाओ। तुम अपनी आंखों को नहीं झुठला सकते। सामान्‍य आदमी यह नहीं कर सकता है। आंखों को झुठलाना असंभव है।

यहीं कारण है कि जब कोई आदमी तुम्‍हारी आंखों में झाँकता है, तुम्‍हारी आंखों में आंखें डालकर देखता है तो तुम्‍हें बहुत बुरा लगाता है। क्‍योंकि वह आदमी तुम्‍हारी असलियत में झांकने की चेष्‍टा कर रहा है। और वहां तुम कुछ भी नहीं कर सकते; तुम्‍हारी आंखें असलियत को प्रकट कर देंगी,वे उसे प्रकट कर देंगी तो तुम सचमुच हो। इसीलिए किसी की आंखों में झांकना शिष्‍टाचार के विरूद्ध माना जाता है। किसी से बातचीत करते समय भी तुम उसकी आंखों में झांकने से बचते हो। जब तक तुम किसी के प्रेम में नहीं हो। जब तक कोई तुम्‍हारे साथ प्रामाणिक होने को राज़ी नहीं था। तब तक तुम उसकी आँख में नहीं देख सकते।

एक सीमा है। मनस्विदों ने बताया है कि तीस सेकेंड सीम है। किसी अजनबी की आंखों में तुम तीस सेकेंड तक देख सकते हो—उससे अधिक नहीं। अगर उससे ज्‍यादा देर तक देखेंगे तो तुम आक्रामक हो रहे हो और दूसरा व्‍यक्‍ति तुरंत बुरा मानेगा। हां, बहुत दूर से तुम किसी की आँख में देख सकते हो; क्‍योंकि तब दूसरे को उकसा बोध नहीं होता। अगर तुम सौ फीट की दूरी पर हो तो मैं तुम्‍हें घूरता रह सकता हूं। लेकिन अगर सिर्फ दो फीट की दूरी हो तो वैसा करना असंभव है।

किसी भीड़-भरी रेलगाड़ी में, या किसी लिफ्ट में आस-पास बैठे या खड़े होकर भी तुम एक दूसरे की आंखों में नहीं देखते हो। हो सकता है किसी का शरीर छू जाए वह उतना बुरा नहीं है; लेकिन तुम दूसरे की आंखों में कभी नहीं झाँकते हो। क्‍योंकि वह जरा ज्‍यादा हो जाएगा। इतनी निकट से तुम आदमी की असलियत में प्रवेश कर जाओगे।

तो पहली बात कि आंखों का कोई संस्‍कारित रूप नहीं होता; आंखें शुद्ध प्रकृति है। आंखों पर मुखौटा नहीं है। और दूसरी बात याद रखने की यह है कि तुम संसार में करीब-करीब सिर्फ आँख के द्वारा गति करते हो। कहते हो कि तुम्‍हारी अस्‍सी प्रतिशत जीवन यात्रा आँख के सहारे होती है। जिन्‍होंने आंखों पर काम किया है उन मनोवैज्ञानिक को का कहना है कि संसार के साथ तुम्‍हारा अस्‍सी प्रतिशत संपर्क आंखों के द्वारा ही होता है। तुम्‍हारा अस्‍सी प्रतिशत जीवन आँख से चलता है।

यही कारण है कि जब तुम किसी अंधे आदमी को देखते हो तो तुम्‍हें दया आती है। तुम्‍हें उतनी दया और सहानुभूति तब नहीं होती जब कि बहरे आदमी को देखते हो। लेकिन जब तुम्‍हें कोई अंधा आदमी दिखाई देता है तो तुम्‍हें अचानक उसके प्रति सहानुभूति और करूणा अनुभव होती है। क्‍यों? क्‍योंकि यह अस्‍सी प्रतिशत मरा हुआ है। बहरा आदमी उतना मरा हुआ नहीं है। अगर तुम्‍हारे हाथ-पाँव भी कट जाएं तो भी तुम इतना मृत अनुभव नहीं करोगे। लेकिन अंधा आदमी अस्‍सी प्रतिशत मुर्दा है। वह केवल बीस प्रतिशत जीवित है।

तुम्‍हारी अस्‍सी प्रतिशत ऊर्जा तुम्‍हारी आंखों से बाहर जाती है। तुम संसार में आंखों के द्वारा गति करते हो। इसलिए जब तुम थकते हो तो सबसे पहले आंखें थकती है। और फिर शरीर के दूसरे अंग थकते है। सबसे पहले तुम्‍हारी आंखें ही ऊर्जा से रिक्त होती है। अगर तुम अपनी आंखें तुम्‍हारी अस्‍सी प्रतिशत ऊर्जा है। अगर तुम अपनी आंखों को पुनर्जीवित कर लो तो तुमने अपने को पुनर्जीवन दे दिया।

तुम किसी प्राकृतिक परिवेश में कभी उतना नहीं थकते हो जितना किसी अप्राकृतिक शहर में थकते हो। कारण यह है कि प्राकृतिक परिवेश में तुम्‍हारी आंखों को निरंतर पोषण मिलता है। वहां की हरियाली, वहां की ताजी हवा,वहां की हर चीज तुम्‍हारी आंखों को आराम देती है। पोषण देती है। एक आधुनिक शहर में बात उलटी है; वहां सब कुछ तुम्‍हारी आंखों को शोषण करता है; वहां उन्‍हें पोषण नहीं मिलता।

तुम किसी दूर देहात में चले जाओ। या किसी पहाड़ पर चले जाओ जहां के माहौल में कुछ भी कृत्रिम नहीं है। जहां सब कुछ प्राकृतिक है, और वहां तुम्‍हें भिन्‍न ही ढंग की आंखें देखने को मिलेंगी। उनकी झलक उनकी गुणवता और होगी। वह ताजी होंगी। पशुओं जैसी निर्मल होंगी। गहरी होंगी। जीवंत और नाचती हुई होंगी। आधुनिक शहर में आंखें मृत होती है। बुझी-बुझी होती है। उन्‍हें उत्‍सव का पता नहीं है। उन्‍हें मालूम नहीं है कि ताजगी क्‍या है। वहां आंखों में जीवन का प्रवाह नहीं है। बस उनका शोषण होता है।

भारत में हम अंधे व्‍यक्‍तियों को प्रज्ञाचक्षु कहते है। उसका विशेष कारण है। प्रत्‍येक दुर्भाग्य को महान अवसर में रूपांतरित किया जा सकता है। आंखों से होकर अस्‍सी प्रतिशत ऊर्जा काम करती है; और अंधा आदमी अस्‍सी प्रतिशत मुर्दा होता है, संसार के साथ अस्‍सी प्रतिशत संपर्क टूटा होता है। जहां तक बाहरी दुनिया का संबंध है, वह आदमी बहुत दीन है। लेकिन अगर वह इस अवसर का, इस अंधे होने के अवसर का उपयोग करना चाहे तो वह इस अस्‍सी प्रतिशत ऊर्जा का उपयोग कर सकता है। वह अस्‍सी प्रतिशत ऊर्जा, जिसके बहने के द्वार बंद है। बिना उपयोग के रह जाती है। यदि वह उसकी कला नहीं जानता है।

तो उसके पास अस्‍सी प्रतिशत ऊर्जा का भंडार पडा है। और जो ऊर्जा सामान्‍यत: बहिर्यात्रा में लगती है वही ऊर्जा अंतर्यात्रा में लग सकती है। अगर वह उसे अंतर्यात्रा में संलग्‍न करना जान ले तो वह प्रज्ञाचक्षु हो जाएगा। विवेकवान हो जाएगा।

अंधा होने से कही कोई प्रज्ञाचक्षु नहीं होता है। लेकिन वह हो सकता है। उसके पास सामान्‍य आंखें तो नहीं है। लेकिन उसे प्रज्ञा की आंखें मिल सकती है। इसकी संभावना है। हमने उसे प्रज्ञाचक्षु नाम यह बोध देने के इरादे से दिया कि वह इसके लिए दुःख न माने कि उसे आंखें नही है। वह अंतर्चक्षु निर्मित कर सकता है। उसके पास अस्‍सी प्रतिशत उर्जा का भंडार अछूता पडा है। जो आँख वालों के पास नहीं है। वह उसका उपयोग कर सकता है।

यदि अंधा आदमी बोधपूर्ण नहीं है तो भी वह तुमसे ज्‍यादा शांत होता है। ज्‍यादा विश्रामपूर्ण होता है। किसी अंधे आदमी को देखो वह ज्‍यादा शांत है। उसका चेहरा ज्‍यादा विश्राम पूर्ण है। वह अपने आप में संतुष्‍ट है, उसमें अंसतोष नहीं है। यह बात बहरे आदमी के साथ नहीं होती है। बहरा आदमी तुमसे ज्‍यादा अशांत होगा और चालाक होगा। लेकिन अंधा आदमी न अशांत होता है और न चालाक और हिसाबी-किताबी होता है। यह बुनियादी तौर से श्रद्धावान होता हे। अस्‍तित्‍व के प्रति श्रद्धावान होता है।

ऐसा क्‍यों होता है। क्‍योंकि उसकी अस्‍सी प्रतिशत ऊर्जा,हालांकि वह उसके बारे में कुछ नहीं जानता है। भीतर की और प्रवाहित हो रही है। वह ऊर्जा सतत भीतर गिर रही है। ठीक जलप्रपात की तरह गिर रही है। उसे इसका बोध नहीं है। लेकिन यह ऊर्जा उसके ह्रदय पर बरसती रहती है। वही ऊर्जा जो बाहर जाती है, उसके ह्रदय में जा रही है। और यह चीज उसके जीवन का गुणधर्म बदल देती है। प्राचीन भारत में अंधे आदमी को बहुत आदर मिलता था—बहुत-बहुत आदर। अत्‍यंत आदर में हमने उसे प्रज्ञाचक्षु कहा है।

तुम यही अपनी आंखों के साथ कर सकते हो। यह विधि उसके लिए ही है। यह तुम्‍हारी बाहर जाने वाली ऊर्जा को वापस लाने, तुम्‍हारे ह्रदय केंद्र पर उतारने की विधि है। अगर वह ऊर्जा तुम्‍हारे ह्रदय में उतर जाए तो तुम बहुत हलके हो जाओगे। तुम्‍हें ऐसा लगेगा कि सारा शरीर एक पंख बन गया है, कि तुम पर अब गुरूत्‍वाकर्षण का कोई प्रभाव न रहा। और तुम तब तुरंत अपने अस्‍तित्‍व के गहनत्‍म स्‍त्रोत से जुड़ जाते हो। और वह तुम्‍हें पुनरुज्जीवित कर देता है।

तंत्र के अनुसार गाढ़ी नींद के गाद तुम्‍हें जो नव जीवन मिलता है, जो ताजगी मिलती है उसका कारण नींद नहीं है। उसका कारण है कि जो ऊर्जा बाहर जा रही थी, वही ऊर्जा भीतर आ जाती है। अगर तुम यह राज जान लो तो जो नींद सामान्‍य व्‍यक्‍ति छह या आठ घंटों में पूरी करता है। तुम कुछ मिनटों में पूरी कर सकते हो। छह या आठ घंटे की नींद में तुम खुद कुछ नहीं करते हो, प्रकृति ही कुछ करती है। और इसका तुम्हें बोध नहीं है कि यह क्‍या करती है। तुम्‍हारी नींद में एक रहस्‍यपूर्ण प्रक्रिया घटती है। उसकी एक बुनियादी बात यह है कि तुम्‍हारी ऊर्जा बाहर नहीं जाती है। वह तुम्‍हारी ह्रदय पर बरसती रहती है। और वहीं चीज तुम्‍हें नया जीवन देती है। तुम अपनी ही ऊर्जा में गहन स्‍नान कर लेते हो।

इस गतिशील ऊर्जा के संबंध में कुछ और बातें समझने की है। तुमने गौर किया होगा कि अगर कोई व्‍यक्‍ति तुमसे ऊपर है तो वह तुम्‍हारी आंखों में सीधे देखता है। और अगर वह तुमसे कमजोर है तो वह नीचे की तरफ देखता है। नौकर गुलाम या कोई भी कम महत्‍व का व्‍यक्‍ति अपने से बड़े व्‍यक्‍ति की आंखों में नहीं देखेगा। लेकिन बड़ा आदमी घूर सकता है। सम्राट घूर सकता है। लेकिन सम्राट के सामने खड़े होकर तुम उसकी आंखे से आँख मिलाकर नहीं देख सकते हो। वह गुनाह समझा जाएगा। तुम्‍हें अपनी आंखों को झुकाएं रहना है।

असल में तुम्‍हारी ऊर्जा तुम्‍हारी आंखों से गति करती है। और वह सूक्ष्‍म हिंसा बन सकती है। यह बात मनुष्‍यों के लिए ही नहीं, पशुओं के लिए भी सही है। जब दो अजनबी मिलती है, दो जानवर मिलते है। तो वे एक-दूसरे की आँख नीची कर ली तो मामला तय हो गया; फिर वे लड़ते नहीं। बात खत्‍म हो गई। निशचित हो गया कि उनमें कौन श्रेष्‍ठ है।

बच्चे भी एक दूसरे की आँख में घूरने का खेल खेलते है; और जो भी आँख पहले हटा लेता है। वह हार गया माना जाता है। और बच्‍चे सही है। जब दो बच्‍चे एक दूसरे की आंखों में घूरते है तो उनमें जो भी पहले बेचैनी अनुभव करता है। इधर-उधर देखने लगता है। दूसरे की आँख से बचता है। वह पराजित माना जाता है। और तो घूरता ही रहता है। वह शक्‍तिशाली माना जाता है। अगर तुम्‍हारी आंखें दूसरे की आंखों को हरा दे तो वह इस बात का सूक्ष्‍म लक्षण है कि तुम दूसरे से शक्‍तिशाली हो।

जब कोई व्‍यक्‍ति भाषण देने या अभिनय करने के लिए मंच पर खड़ा होता है। तो वह बहुत भयभीत होता है। वह कांपने लगता है। जो लोग पुराने अभिनेता है, वे भी जब मंच पर आते है तो उन्‍हें भय पकड़ लेता है। कारण यह है कि उन्‍हें इतनी आंखें देख रही है। उनकी और इतनी आक्रामक ऊर्जा प्रवाहित हो रही है। उनकी और हजारों लोगों से इतनी ऊर्जा प्रवाहित होती है वे अचानक अपने भीतर कांपने लगते है।

एक सूक्ष्‍म ऊर्जा आंखों से प्रवाहित होती है। एक अत्‍यंत सूक्ष्‍म, अत्‍यंत परिष्‍कृत शक्‍ति आंखों से प्रवाहित होती है। और व्‍यक्‍ति-व्‍यक­्‍ति के साथ इस ऊर्जा का गुण धर्म बदल जाती है।

बुद्ध की ऊर्जा एक तरह की आंखों से प्रवाहित होती है, हिटलर की आंखों से सर्वथा भिन्‍न तरह की ऊर्जा प्रवाहित होती है। अगर तुम बुद्ध की आंखों से देखो तो पाओगे कि वह आंखें तुम्‍हें बुला रही है। तुम्‍हारा स्‍वागत कर रही है। बुद्ध की आंखें तुम्‍हारे लिए द्वार बन जाती है। और अगर तुम हिटलर की आंखों से देखो तो पाओगे कि वे तुम्‍हें अस्‍वीकार कर रही है। तुम्‍हारी निंदा कर रही है। तुम्‍हें दूर हटा रही है। हिटलर की आंखें तलवार जैसी है और बुद्ध की आंखें कमल जैसी है, हिटलर कि आंखों में हिंसा है, बुद्ध की आंखों में करूणा।

आंखों का गुणधर्म अलग-अलग है। देर अबेर हम आँख की ऊर्जा को नापने की विधि खोज लेंगे। और तब मनुष्‍य के संबंध में जानने को बहुत नहीं बचेगा। सिर्फ आँख की ऊर्जा आँख का गुणधर्म बता देगा कि उसके पीछे किस किस्‍म का व्‍यक्‍ति छिपा है। देर-अबेर इसे नापना संभव हो जाएगा।

सह सूत्र यह विधि इस प्रकार है: ‘आँख की पुतलियों को पंख की भांति छूने से उनके बीच का हलकापन ह्रदय में खुलता है और वहां ब्रह्मांड व्‍याप जाता है।’

‘आँख की पुतलियों को पंख की भांति छूने से…..।’

दोनों हथेलियों का उपयोग करो, उन्‍हें अपनी आंखों पर रखो और हथेलियों से पुतलियों को स्‍पर्श करो—जैसे पंख से उन्‍हें छू रहे हो। पुतलियों पर जरा भी दबाव मत डालों। अगर दबाव डालते हो तो तुम पूरी बात से चूक जाते हो। तब पूरी विधि ही व्‍यर्थ हो गई। कोई दबाव मत डालों; बस पंख की तरह छुओ।

ऐसा स्‍पर्श, पंखवत स्‍पर्श धीरे-धीरे आएगा। आरंभ में तुम दबाव दोगे। इस दबाव को कम से कम करते जाओ—जब तक कि दबाव बिलकुल न मालूम हो, तुम्‍हारी हथैलियां पुतलियों को स्‍पर्श भर करें। मात्र स्‍पर्श। इस स्‍पर्श में जरा भी दबाव न रहे। यदि जरा भी दबाव रह गया तो विधि काम न करेगी। इसलिए इसे पंख-स्‍पर्श कहा गया है।

क्‍यों? क्‍योंकि जहां सूई से काम चले वहां तलवार चलाने से क्‍या होगा। कुछ काम है जिन्‍हें सुई ही कर सकती है। उन्‍हें तलवार नहीं कर सकती। अगर तुम पुतलियों पर दबाव देते हो तो स्‍पर्श का गुण बदल गया; तब तुम आक्रामक हो गए। और जो ऊर्जा आंखों से बहती है वह बहुत सूक्ष्‍म है। बहुत बारीक है। जरा सा दबाव, और स्‍पर्श, एक संघर्ष, एक प्रतिरोध पैदा कर देता है। दबाव पड़ने से आंखों से बहने वाली ऊर्जा लड़ेंगी, प्रतिरोध करेगी। एक संघर्ष चलेगा।

तो बिलकुल दबाव मत डालों; आँख की ऊर्जा को हलके से दबाव का भी पता चल जाता है। वह बहुत सूक्ष्‍म है, कोमल है। तो दबाव बिलकुल नहीं, तुम्‍हारी हथैलियां पंख की तरह पुतलियों को ऐसे छुएँ जैसे न छू रही हो। आंखों को ऐसे स्‍पर्श करो कि वह स्‍पर्श पता भी न चले। किंचित भी दबाव न पड़े;बस हलका सा अहसास हो कि हथेली पुतली को छू रही है। बस।

इससे क्‍या होगा? जब तुम किसी दबाव के बिना स्‍पर्श करते हो तो ऊर्जा भीतर की और गति करने लगती है। और अगर दबाव पड़ता है तो ऊर्जा हाथ से लड़ने लगाती है। और वह बाहर चली जाती है। लेकिन अगर हलका सा स्‍पर्श हो, पंख-स्‍पर्श हो, तो ऊर्जा भीतर की और बहने लगती है। एक द्वार बंद है। और ऊर्जा पीछे की तरफ लौट पड़ती है। और जिस क्षण ऊर्जा पीछे की तरफ बहने लगेगी, तुम अनुभव करोगे कि तुम्‍हारे पूरे चेहरे पर और तुम्‍हारे सिर में एक हलकापन फैल गया। यह प्रतिक्रमण करती हुई ऊर्जा ही, पीछे लौटती है।

और इन दो आंखों में माध्‍य में तीसरी आँख है। प्रज्ञाचक्षु है। इन्‍हें दो आंखों के मध्‍य में शिवनेत्र कहते है। आंखों से पीछे की और बहने वाली ऊर्जा तीसरी आँख पर चोट करती है। और उसके कारण ही हल्‍का पन महसूस करते हो। जमीन से ऊपर उठते मालूम पड़ते हो। मानों गुरूत्‍वाकर्षण समाप्‍त हो गया। और यही ऊर्जा तीसरी आँख से चलकर ह्रदय पर बरसती है।

यह एक शारीरिक प्रक्रिया है। बूंद-बूंद ऊर्जा नीचे गिरती है। ह्रदय पर बरसती है। और तुम्‍हारे ह्रदय में बहुत हलकापन अनुभव होगा। ह्रदय की धड़कन बहुत धीमी हो जाएगी और श्‍वास की गति धीमी हो जाएगी और तुम्‍हारा शरीर विश्राम अनुभव करेगा।

यदि तुम इसे ध्‍यान की तरह नहीं भी करते हो तो भी यह प्रयोग तुम्‍हें शारीरिक रूप से सहयोगी होगा। दिन में कभी भी कुर्सी पर बैठे हुए, या यदि कुर्सी न हो तो रेलगाड़ी या कहीं भी बैठे हुए, आंखें बंद कर लो, पूरे शरीर को शिथिल छोड़ दो और अपनी हथेलियों को आंखों पर रखो। लेकिन आंखों पर दबाव मत डोलो—यही बात बहुत महत्‍व पूर्ण है—पंख की भांति छुओ भर।

जब तुम बिना दबाव के छूते हो तो तुम्‍हारे विचार तत्‍क्षण बंद हो जाते है। शांत मन में विचार नहीं चल सकते है। वह ठहर जाते है। विचारों को गति करने के लिए पागलपन जरूरी है। तनाव जरूरी है। विचार तनाव के सहारे जीते है। जब आंखें मौन, शिथिल और शांत है और ऊर्जा पीछे की तरफ गति करने लगती है तो विचार ठहर जाते है। तुम्‍हें एक सूक्ष्म सुख का अनुभव होगा जो रोज प्रगाढ़ होता जाता है।

दिन में यह प्रयोग कई बार करो। एक क्षण के लिए भी यह छूना अच्‍छा रहेगा। जब भी तुम्‍हारी आंखें थक जाएं, जब भी उनकी ऊर्जा चुक जाए। वे बोझिल अनुभव करें—जैसा पढ़ने, फिल्‍म देखने या टी वी शो देखने से होता है—तो आंखें बंद कर लो और उन्‍हें स्‍पर्श करो। उसका असर तत्‍क्षण होगा।

लेकिन अगर तुम इसे ध्‍यान बनाना चाहते हो तो कम से कम चालीस मिनट तक इसे करना चाहिए। और कुल बात इतनी है कि दबाव मत डालों, सिर्फ छुओ। क्‍योंकि एक क्षण के लिए तो पंख जैसा स्‍पर्श आसान है। लेकिन ऐसा स्‍पर्श चालीस मिनट रह, यह कठिन है। अनेक बार तुम भूल जाते हो, और दबाव शुरू हो जाता है।

दबाव मत डालों। चालीस मिनट तक यह बोध बना रहे कि तुम्‍हारे हाथों में कोई वचन नहीं है। वे सिर्फ स्‍पर्श कर रहे है। इसका सतत होश बना रहे कि तुम आंखों को दबाते नहीं, केवल छूते हो। फिर वह श्‍वास की भांति गहरा बोध बन जाएगा। जैसे बुद्ध कहते है कि पूरे होश से श्‍वास लो, वैसे ही स्‍पर्श भी पूरे होश से करो। तुम्‍हें सतत स्‍मरण रहे कि मैं बिलकुल दबाव न डालु। तुम्‍हारे हाथों को पंख जैसा हलका होना चाहिए। बिलकुल वज़न शून्‍य मात्र स्‍पर्श। तुम्‍हारा अवधान एकाग्र होकर वहां रहेगा। और ऊर्जा निरंतर बहती रहेगी।

आरंभ में ऊर्जा बूंद-बूंद आएगी। फिर कुछ ही महीनों में तुम देखोगें कि वह सरित प्रवाह बन गया है। और वर्ष भर के भीतर वह बाढ़ बन जाएगी। और जब वह घटित होगा—‘आँख की पुतलियों को पंख की भांति छूने से उनके बीच का हलकापन’—जब तुम छूओगे तो तुम्‍हें हलकापन अनुभव होगा। तुम इसे अभी ही अनुभव कर सकते हो। जैसे ही तुम छूते हो, तत्‍काल एक हलकापन पैदा हो जाता है। और वह उनके बीच का हलकापन ह्रदय में खुलता है, वह हलकापन गहरे उतरता है, ह्रदय में खुलता है।

ह्रदय में केवल हल्‍कापन प्रवेश कर सकता है। कुछ भी जो भारी है वह ह्रदय में नहीं प्रवेश कर सकता है। ह्रदय में सिर्फ हलकी चीजें घटित हो सकती है। दो आंखों के बीच का यह हलकापन ह्रदय में गिरने लगेगा और ह्रदय उसे ग्रहण करने को खुल जाएगा।

‘और वहां ब्रह्मांड व्‍याप जाता है।’

और जैसे-जैसे यह ऊर्जा की वर्षा पहले झरना बनती है, फिर नदी बनती है और फिर बाढ़ बनती है। तुम उसमें खो जाओगे। बह जाओगे। तुम्‍हें अनुभव होगा कि तुम नहीं हो। तुम्‍हें अनुभव होगा कि सिर्फ ब्रह्मांड है। श्‍वास लेते हुए, श्‍वास छोड़ते हुए तुम ब्रह्मांड ही हो जाओगे। तब श्‍वास के साथ-साथ ब्रह्मांड ही भीतर आएगा। और ब्रह्मांड ही बाहर जायेगा। तब अहंकार, जो सदा रहे हो, नहीं रहेगा। तब अहंकार गया।

यह विधि बहुत सरल है; इसमें खतरा नहीं है। तुम जैसे चाहो इसके साथ प्रयोग कर सकते हो। लेकिन इसके सरल होने के कारण ही तुम इसे करने से भूल भी सकते हो। पूरी बात इस पर निर्भर है कि दबाव के बिना छूना है।

तुम्‍हें यह सीखना पड़ेगा। प्रयोग करते रहो। एक सप्‍ताह के भीतर यह सध जायेगा। अचानक किसी दिन जब तुम दबाव दिए बिना छूओगे, तुम्‍हें तत्‍क्षण वह अनुभव होगा जिसकी मैं बात कर रहा हूं। एक हलकापन, ह्रदय का खुलना और किसी चीज का सिर से ह्रदय में उतरना अनुभव होगा।

ओशो

Monday, December 3, 2012

चुट्किला,



निशिर धेरै पढेर डॉक्टर भएछ.....
र उसले जीवनको पहिलो अप्रेशन गर्नु परेछ।
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अपरेशन गरेको केहि समय पछि बिरामी मरेछ।
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निशिर डाक्टरले ले भित्ता मा टासेको भगवान
को फोटो मा हात जोडेर शिर निहुनराएर झुकेर
पुरा श्रध्दा को साथ भन्यो - हे प्रभु, मेरो तर्फ बाट
यो पहिलो भेट स्वीकार गर्नुस.... 
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निशीरले  एउटी केटीलाई I Love You भनेछ

केटीले एक झापड हानेर भनी- "के भनिस् ?"
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निशीर(रुँदै): जब सुन्दै सुनिनस् भने झापड किन हानिस् ?"
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एक जना असी वर्षको बुढो डाक्टरको मा गएछ र निकै फूर्ति लगाएर कुरा गर्न थालेछ ।
बुढोः मेरी २८ वर्षकी बुढी गर्भवती भएकी छ, तपाईको के भनाई छ त डाक्टर साब ?
डाक्टरः म एउटा कथा भन्छु.. एकपटक एउटा शिकारीले हतारमा बन्दुकको सट्टा छाता बोकेर हिंड्छ । उ जंगलमा पुग्छ र एउटा बाघ देख्छ;
छाता उठाउँछ, झटपट छाता उघार्छ..ढ्याम्म.. त्यो बाघ त्यही ठहरै हुन्छ ।
बुढोः यो त असम्भव छ, कुनै अर्को व्यक्तिले बाघलाई बन्दुक हानेको हुनुपर्छ ।
डाक्टरः हो मेरो भनाई पनि यति मात्रै हो ।
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अफिसबाट हिंड्दा पानी पर्दै थियो.....
घर आईपुग्दा पुरै भिजेछु.....
पछाडि भिरेको झोला पनि भिजेछ.....
झोला खोलेर हेरे... धन्न ! छाता भिजेको रै'नछ.........  
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केटी :- डार्लिङ भोली मेरो जन्मदिन हो
केटा :- really ....? happy birthday dalring in Advance !!
केटी :- के gift दिन्छौ मलाइ ?
केटा :- Ring दिन्छु :)
केटी :- Ring ? Wow sup-purb love u darling.

केटा :- २ ring दिन्छु न उठाउनु नि पैसा धेरै छैन |
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मुन्द्रे: यार म बच्चा को बेलामा २० तल्लाबाट
खसेको थिए।।
रुपक: अनि बाच्यौ की मर्यौ?
मुन्द्रे: थाहा नै भएन यार धेरै पुरानो कुरा हो...
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*Height of Misunderstanding*
शेरे घर आउने बित्तिकै उसको बुढीले खुशी हुँदै भनी: "सुन्नुस न, मेरो महिना नाघीसकेको छ ,
सायद म आमा बन्दै छु । जँचाउन गएको थिएँ भोली रिपोर्ट आएपछी थाह हुन्छ रे !"
त्यत्तिकैमा नेपाल विद्युत प्राधिकरण बाट फोन आउँछ अनि बुढीले उठाउँछे:
-हेलो !
- हेलो म ने.वि.प्रा. बाट , तपाईँलाई
थाहा छ तपाईँको महिना नाघीसकेको छ नि !

-OMG, तपाईँलाई कसरी थाहा भो?
- हामीलाई सबैको थाहा हुन्छ ,
हाम्रो फाईलमा सबैको रेकर्ड हुन्छ ।
( बुढीले आत्तिदै शेरेलाई भनी, अनि फोनमा उसले थर्काउन थाल्यो) :
- "यसरी सबैको रेकर्ड राख्दै फोन गर्न लाज लाग्दैन ?"
- के को लाज ? यो त हाम्रो Duty हो !
-अब मैले के गर्नु पर्यो त ?
-केहि गर्नु पर्दैन पैसा तिरे पुग्छ ।
-पैसा तिरिन भने ?
-पैसा नतिरे त हाम्रो नियमै छ , ७ दिन भित्र तपाईँको काटिने छ ।
-केरे? काट्ने रे ! त्यसपछी मेरो बुढीको के हुन्छ ?
-त्यो त हाम्लाई के थाहा सायद Candel ले काम चलाउनु हुन्छ होला !

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बोस : तिमी अफिसमा आउँदा किन येति छोटो छोटो लुगा लगाएर आउछौ?
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सेक्रेटरी : के गर्नु सर येति कम तलब मा येत्रै छोटो कपडा मात्र आउछ ?
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बोस : तेसो भए आज देखि तलब बन्द !
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१८ बर्षकी कुमारी केटी pregnent भइन !
उस्की आमा रिसले चुर भएर ' को हो त्यो नालायक '
भन्दै नानाभाती गाली गर्यो ।
३० मिनेट
पछी उस्को गेटमा एउटो कालो चिल्लो गाडी चिट्टिक्क
मिलेका टाइ सुट लाएको मान्छे आएर आमा संग सोध्यो । मैले सुने अनुसार तपाइको छोरी pregnent भइन रे ।
 अब सासु आमा जि म तपाइको छोरिलाई बिहे गर्न त सक्दिना तर तपाइकी छोरीले छोरी पाइ भने म १ करोड अनि एउटा घर दिनेछु ।
या छोरा भयो भने २ करोड अनि एउटा घर दिनेछु । तर केहि भएन भने ........
बिचमै कुरा काट्दै आमा बोलिन 'बाबु केहि पनि भएन भने Try गरिरहनुस न........
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बिहे अगाडि केटा केटीको गफ!! माथि बाट तल पड्दै जानुस् !!

केटा: साचै भन्नु पर्दा मैले यो छण धेरै कुरेको थिए।
केटी: के भन्न खोजेको तिमी मलाई छोड्न चाहन्छौ ?
केटा: होइन!! त्यस्तो तिमी नसोच.
केटी: के तिमी मलाई साचै मन पराउछौ?
केटा: अफ्कोर्स !! सधैं भरी.
केटी: के तिमी मलाई ढाट्दै छौ ?

केटा: नो!! किन तिमी यस्तो वाइयात कुरा सोच्दैछौ ?
केटी: के तिमी मलाई किस गर्छौ ?
केटा: सधैं भरी ।
केटी: तिमी मलाई पिट्छौ कि ?
केटा: के तिमी पागल त भएनउ ?
केटी: के म तिमीलाई विश्वाश गरौँ ?
केटा: Yes
केटी: Darling

बिहे भईसक्यो अब तल बाट माथि पढ्दै जानुस् !!
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एकजना मान्छे भगवानसंग :

हे भगवान !

"तिमीले बाल्यकाल दियौ
आँखिर खोस्यौ
.
.
जवानी दियौ
त्यो पनि खोस्यौ ,
.
.
पैसा दियौ
त्यो पनि फिर्ता लियौ
.
.
बुढी दियौ ,

दिएर त्यो चै किन बिर्सियौ ?????
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धुर्मुसे ले गाउबाट एउटा बाख्रा किनेरल्याउदै
थियो
;
बाटोमा एउटा गाउको चिनेको मान्छे भट्यो अनि गाउले सोधी हाल्यो
;

गाउले : हैन हो धुर्मे कति हालेर ल्याउनु भो यो बाख्रा ?
;
धुर्मुसे चै सुनेको नसुने जसरि हिड्यो
;
गाउले ले एक छिन् पछी फेरी सोध्यो
;
धुर्मुसे लाई जबाफ दिने मन थिएन त्यसैले उ चुप लगेर
हिडीरह्यो
;
फेरी एक छिन् पछी गाउले ले सोध्न थाल्यो
;
" हैन यो बाख्रो लाई कति हालेर ल्याएको भन्या "
;
सोधेको सोधेई गर्न थाल्यो
;
धुर्मुसेलाई लास्ट रिस उठ्यो अनि
;
;
;अनि रिसाउदै भन्यो
अहिले सम्म मैले एक पटक नि हालेको छैन तपाईनै
हाल्नुस भनेर बाख्राको पुच्छर उठाइदियो !
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दसैं मनाउने खर्च जुटाउन नसकेपछि घटस्थापनाको राति हाकु काले र पुतलीको झगडा परेछ।
भोलिपल्ट बिहानै पुतलीले प्याकिङ गरेको देखेर हाकुले भनेछः 'कहाँ जान लागिस् ?'
पुतलीः मेरी आमा भए ठाउँमा, यस्तो नर्कमा बस्दिनँ म !!
हाकुले नि प्याकिङ गर्न थाल्यो !
पुतलीः अनि आफूचाहिँ नि ?

हाकुः म पनि बस्दिन यो नर्कमा, म पनि जान्छु मेरी आमा भए ठाउँमा !
पुतलीः अनि यी ६ जना बच्चा नि ?
हाकुः 'माम्पाका, तँ आफ्नो आमा भए ठाउँमा जाने, म पनि आफ्नी आमा भए ठाउँमा जाने, यो हिसाबले त ६ जना बच्चा नि आफ्नै आमा भए ठाउँमा जान्छन् नि ! को बस्छ यो नर्कमा !
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बिबाह अघी-
प्रेमीकाले प्रेमिसंग: चन्द्रमा कतिवटा छन्?
प्रेमी: दुइवटा प्रिय, एउटा मसंगै छ एउटा आकासमा|
बिबाह पछी-
पत्नी: चन्द्रमा../..कतिवटा छन्? . . . . . . .
पति: आखा छैनन्, एउटै हुन्छ| माथि आकाशमा देख्दिनस, तेरा बाजेले टर्च लाइट बालेर बसेका हुन् र !!
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सेरेले आफ्नो आमालाई मुम्बई बाट फोन गरेछ ।

सेरे:- आमा मलाई AIDS लाग्यो !
.
.
.
आमा:- त्यसो भए त घर न आ उतै बश ।
.
.
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सेरे:- किन र आमा के हुन्छ म घर आउदा ?
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.
.
आमा :- यदि त घर आईस भने

... १. तेरो स्वास्नीलाई एड्स लाग्छ

२.तेरो स्वास्नी बाट तेरो साथी धोतीलाई लाग्छ
३. धोती बाट हाम्री नोक्कर्नी लाई लाग्छ
४. नोक्कर्नी बाट तेरो बाउ लाई लाग्छ
५. तेरो बाउ बाट मलाई लाग्छ
६. मलाई लाग्यो भने पुरा गाँउलाई लाग्छ
७.गाँउलाई लाग्यो भने देशलाई लाग्छ ।

देश तेरो हातमा छ सेरे देशलाई बचा....
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पुलिस - शेरे भाई
तिम्रो श्रीमति हराएको यतिका दिनभैसक्यो तर तिमीले किन पुलिसमा Reportनलेखाएको त????????
शेरे - नगर्ने मेरो मोटरसाईकलtहराउँदा Report गरेको त पुलिसले भेट्टाएर १५ - २० दिन चलाएपछि बल्ल फिर्तागरेका थिए ।
झन् यसपटक त श्रीमति नै हराकि छ Report गर्न म लाटो छु र!!!
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एउटा प्रेमी प्रेमिका को जोडी park मा बसेर स्याउ खाँदै थिए..
प्रेमी कतैपनि नहेरी प्रेमिकाको आँखामा हेरिरा थियो..
प्रेमिका:(लजाउदै) के हेरेको त्यस्तो नशालु नजरले?? . .
प्रेमी: मोटि अलि अलि गरेर खा.. १०० रुपैया किलो छ स्याउ..
 
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 एउटा सानो बच्चा बस को झ्यालबाट सुसु गर्दै थियो ।
एउटा केटी : तलाई लाज लाग्दैन ??
फुचे : अरे आन्टी लाज को कुर छडदिनुस् न, सुसु हेर्नुस् त कती टाढा सम्म जादै छ!!!!!

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एकदिन हर्के घर ढिला पुग्यो
उसको बाउले किन ढिला आइस भनेर सोध्दा हर्केले साथीको घर मा थिए भन्यो
उसको बाउले हर्केकै अगाडी उसको१०जना साथीलाई फोन गर्यो
पहिलो ४ जना : uncle यहि छ मा संगै छ
अर्को २ जना : uncle , भर्खर निस्क्यो आउदै होला
अर्को ३ जना : येही छ uncle पढीराखेको छ फोन दिउ
last को १ जना : भन्नुस daddy बोल्दै छु,

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बुडा :- सधै सागको तरकारी खाँदा खाँदा वाक्क लागिसक्यो, अरु केहि नया बनाउन आउँदैन तलाई ??
 बुडी :- सागको तरकारीमा त iron हुन्छ ... नि मेरो राजा । ...
 बुडा :- अनि daily iron ख्वाएर के मेरो के आचीबाट जगडम्बा रड निकाल्ने बिचार छ कि क्या हो         तेरो हँ !!
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अदालतमा श्रीमान श्रीमतीको कुरा यस्तो भएपछि...
श्रीमान :- म मेरो पत्नी सँग खुशी छैन, मलाई डिवोर्स दिलाईदिनु पर्यो !! ...
वकिल :- के यो कुरा साँचो हो ? ...
श्रीमती :- खोइ ! अब टोलका सबै केटाहरु त म सँग खुशी नै छन् ! वँहालाई मात्र के समस्या छ ।
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निशीर :- Hello Sweet Heart !!
प्रेमीका :- Hello dear,
निशीर :- के छ हो माया मलाई तिम्रो निकै याद आइराछ नि !!!
प्रेमीका :- लौ अघि भर्खर कुरा गरेको हैन फोनमा ?
निशीर :- लौ फेरी टिम्लाई नै परेछ !!!
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तीनजना केटीहरु मरेर यमलोक पुगेछन ।
तिनैजना केटीहरुलाई यमराजले सोधेछन :- तिमीहरुले पृथ्वीमा के-के काण्ड गर्यौ ?
पहिलो केटि :- हजुर मैले पृथ्वीमा पाप गरे ।
यमराज :- यसलाई नर्क मा पठाईदे ।
दोस्रो केटि :- हजुर मैले पृथ्वीमा धर्म मात्र गरे ।

यमराज :- यसलाई स्वर्गमा पठाईदे
तेस्रो केटि :- हजुर मैले पृथ्वीमा माया मात्र गरे
यमराज :- यसलाई मेरो कोठामा पठाईदे
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एक जना केटा एक्लै बाइक मा गैरहेको थियो
बाटो मा पैदल हिडिरहेको एकदम च्वाक केटी देखेर
बाइक slow down गर्दै

केटा :- हाइ मिस lift दिउ ?

केटी :- भाग साले हरामी हरु ३ दिन भयो lift
लिदा लिदै अझै घर पुगेकी छैन :)

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एउटा मान्छेका चार बच्चा थिए ....!!!
सरकारले आह्वान गर्यो जसको ५ ओटा बच्चा हुन्छ उसलाई रु २ लाख पुरस्कार दिइने छ ...!!!
त्यो मान्छेले श्रीमती संग भन्यो : मेरो एउटा बच्चा मेरी girlfriend संग छ
म लिएर आउछु ...

फर्केर घर आउदा आफ्ना दुइ बच्चाहरु गायब थिए!!!
मान्छे : २ बच्चाहरु कहाँ गए ?
श्रीमती :- जसको थियो उसैले लिएर गयो नि तिमि एक्लैले त सरकारको आह्वान सुनेनौ होलानि!!!!!
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एक जना जड्या १ दिन एस्तो झ्याप भएछ...
अनि खाना खानु kitchen मा गएछ..
भात हालेछ..
दाल हालेछ ..
तरकारी हालेछ ..
आचार हालेछ ...
...
...
...
...
एकछिन् पछि येसो हेरेको त थाल नै रैनछ .....
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