Friday, March 1, 2013

" ओशो अमृत पत्र: ध्‍यान की गहराई के साथ ही संन्‍यास-चेतना का आगमन "

" मेरे प्रिय,

प्रेम, बहुमूल्‍य है तुम्‍हारा अनुभव।

जो चाहते थे वही हुआ है।

द्वार खुला है—जन्‍मों-जन्‍मों से बंद पड़ा द्वार।

इसलिए पीड़ा स्‍वभाविक है।

नया जन्‍म हुआ है तुम्‍हारा।

इसलिए, प्रसव से गुजरना पड़ा है।

भय जरा भी मन में न लाना।

भय हो तो मेरे स्‍मरण करना।

स्‍मरण के साथ ही भय तिरोहित हो जायेगा।

मेरी आंखे सदा ही तुम्‍हारी ओर हैं।

जो भी सहायता आवश्‍यकता होगी,

वह तत्‍काल पहुंच जाएगी।

आनंद भी बाढ़ की भांति आता है।

उससे भी न घबराना।

जब भी आनंद बढ़े तभी बस,

प्रभु को धन्‍यवाद देना और शांत रहना।

जब संन्‍यास का भाव बढ़ेगा।

उससे भी चिंतित मत होना।

अब तो संन्‍यास स्‍वयं ही आ जायेगा।

आ ही रहा है।

बादल तो घिर ही गए हैं।

बस, अब वर्षा होने को ही है।

और ह्रदय की धरती तो सदा से ही प्‍यासी है। "

~ रजनीश के प्रणाम

25—1—1971

(प्रति : श्री सेवंतीलाल सी. शाह, अब स्‍वामी आनंद मुनि, अहमदाबाद गुजरात)

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