" प्रिय आनंद मूर्ति,
प्रेम, संकल्प के मार्ग में आती बाधाओं को प्रभु-प्रसाद समझना,
क्योंकि उनके बिना संकल्प के प्रगाढ़ होने का और कोई उपाय नहीं है।
राह के पत्थर प्रज्ञावान के लिए, अवरोध नहीं, सीढ़ियां ही सिद्ध होते है।
अंतत, सब कुछ स्वयं पर ही निर्भर है।
अमृत जहर हो सकता है।
और जहर अमृत हो सकता है।
फूल कांटों में छिपे है।
कांटो को देख कर जो भाग जाता है,
वह व्यर्थ ही फूलों से वंचित रह जाता हे।
हीरे खदानों में दबे हे।
उनकी खोज में पहले तो कंकड़ पत्थर ही हाथ आते है।
लेकिन उनसे निराशा होना हीरों को सदा के लिए ही खोना है।
एक-एक पल कीमती है।
समय लौटकर नहीं आता है।
और खोये अवसर खोया जीवन बन जाते है।
अँधेरा जब घना हो तो जानना कि सूर्योदय निकट है। "
~ रजनीश के प्रणाम
17—11—1970
( प्रति : स्वामी आनंद मूर्ति, अहमदाबाद )
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