Friday, February 15, 2013

" ओशो अमृत पत्र : संन्‍यास संकल्‍प नहीं, समर्पण है "

" मेरे प्रिय,

प्रेम, सोच-विचार कैसा?

क्षण का भी तो भरोसा नहीं है।

समय तो प्रतिपल हाथ से चुकता ही जाता है।

और मृत्‍यु न पूछकर आती है।

न बताकर ही।

फिर संन्‍यास का अर्थ है :सहज जीवन।

वह आरोपण नहीं; विपरीत समस्‍त आरोपणों से मुक्‍ति है।

संन्‍यास तुम्‍हारा निर्णय भी नहीं है।

वह तो तुम से ही छुटकारा जो है।

संन्‍यास संकल्‍प नहीं, समर्पण है। "

~ रजनीश के प्रणाम

22—1—1971

(प्रति : श्री शिव, अब स्‍वामी अगेह भारती, जबलपुर, म. प्र.)

No comments:

Post a Comment