" पूछा है: यदि आप कल इस प्रश्न का जवाब दे देते तो में अपना पूना आना सफल समझूंगा… अब उनका प्रश्न सुनिये—
"मुक्त यौन-संबंध के अंतर्गत क्या पिता पुत्री ओर मां बेटे के बीच भी यौन संबंध हो सकता है? यदि नहीं क्यों नहीं?"
"यह प्रश्न उन्होंने इतनी बार पूछा है कि मुझे शक है, तुम्हें अपनी मां से यौन-संबंध करना है कि अपनी बेटी से, किससे करना चाहते हो। ये प्रश्न तुम ने इतनी बार क्यों पूछ रहे हो। और यही प्रश्न हेतु है उन्हें पूना लाने का। तो जरूर यह मामला निजी होना चाहिए। व्यक्तिगत होना चाहिए। किससे तुम्हें यौन संबंध करना हे—मां से कि अपनी बेटी से? सीधी-सीधी बात क्यों नहीं पूछते फिर, इसको इतना तात्विक रंग देने की क्या जरूरत है। कम से कम ईमानदार प्रश्न तो पूँछों इतनी ईमानदारी, इतना साहस तो होना चाहिए।
मां-बेटे का संबंध या बेटी और बाप का संबंध अवैज्ञानिक है। उससे जो बच्चे पैदा होंगे वे अपंग होंगे, लंगड़े होंगे। लूले होंगे। बुद्धिहीन होंगे। इसका कोई धर्मसे संबंध नहीं है। यह सत्य दुनिया के लोगों को बहुत पहले पता चल चुका है। सदियों से पता रहा है। विज्ञान तो अब इसाक वैज्ञानिक रूप दे रहा है। भाई बहन का संबंध भी अवैज्ञानिक है। इसका कोई नैतिकता से संबंध नहीं है। सीधी सी बात इतनी है कि भाई और बहन दोनों के वीर्य कण इतने समान होते है कि उनमें तनाव नहीं होता। उनमें खिंचाव नहीं होता। इसलिए उनसे जो व्यक्ति पैदा होगा, वह फुफ्फुस होगा; उसमें खिंचाव नहीं होगा, तनाव नहीं होगा, उसमें ऊर्जा नहीं होगी। जितने दूर का नाता होगा, उतना ही बच्चा सुंदर होगा। स्वस्थ होगा, बलशाली होगा। मेधावी होगा। इसलिए फिक्र की जाती रही कि भाई बहन का विवाह न हो। दूर संबंध खोजें जाते है। जिलों गोत्र का भी नाता न हो, तीन-चार पाँच पीढ़ियों का भी नाता न हो। क्योंकि जितने दूर का नाता हो, उतना ही बच्चे के भीतर मां और पिता के जो वीर्याणु और अंडे का मिलन होगा, उसमें दूरी होगी तो उस दूरी के कारण ही व्यक्तित्व में गरिमा होती है।
इसलिए मैं इस पक्ष में हूं कि भारतीय को भारतीय से विवाह नहीं करना चाहिए; जापनी से करे, चीनी से करे, तिब्बती से करे, इरानी से करे, जर्मन से करे, भारतीय से न करे। क्योंकि जब दूर ही करनी है जितनी दूर हो उतना अच्छा।
और अब तो वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो चुकी है बात। पशु-पक्षियों के लिए हम प्रयोग भी कर रहे है। लेकिन आदमी हमेशा पिछड़ा हुआ होता है। क्योंकि उसकी जकड़ रूढ़िगत होती है। अगर हमको अच्छी गाय की नस्ल पैदा करनी है तो हम बाहर से वीर्य-अणु बुलाते है। अंग्रेज सांड का वीर्य अणु बुलाते है। भारतीय गाय के लिए। और कभी नहीं सोचते कि गऊ माता के साथ क्या कर रहे हो तुम यह। गऊ माता और अंग्रेज पिता, शर्म नहीं आती। लाज-संकोच नहीं। मगर उतने ही स्वस्थ बच्चे पैदा होंगे। उतनी ही अच्छी नस्ल होगी।
इसलिए पशुओं की नसलें सुधरती जा रही है, खासकर पश्चिम में तो पशुओं की नसलें बहुत सुधर गई है। कल्पनातीत,साठ-साठ लीटर दूध देने वाली गायें कभी दूनिया में नहीं थी। और उसका कुल कारण यह है कि दूर-दूर के वीर्याणु को मिलाते जाते है। हर बार। आने वाले बच्चे और ज्यादा स्वास्थ और भी स्वारथ होते जाते है। कुत्ते की नसलों में इतनी क्रांति हो गई है कि जैसे कुत्ते कभी नहीं थे दुनियां में। रूस में फलों में क्रांति हो गई हे। कयोंकि फलों के साथ भी यही प्रयोग कर रहे है। आज रूस के पास जैसे फल है, दुनिया में किसी के पास नहीं है। उनके फल बड़े है, ज्यादा रस भरे है, ज्यादा पौष्टिक हे। और सारी तरकीब एक है: जितनी ज्यादा दूरी हो।
यह सीधा सा सत्य आदिम समाज को भी पता चल गया था। मगर स्वामी शांता नंद सरस्वती को अभी तक पता नहीं है। और वे समझते है कि बड़े आधुनिक आदमी है, रूढ़ियों के बड़े विरोधी है। इसलिए भाई-बहन का विवाह का निषिद्ध था। निषिद्ध रहना चाहिए। असल में चचेरे भाई बहनों से भी विवाह निषिद्ध होना चाहिए। मुसलमानों में होता है, ठीक नहीं है। दक्षिण भारत में होता है। ठीक नहीं है। अवैज्ञानिक है। और मां-बेटे का विवाह तो एकदम ही मूढता पूर्ण हे, एक दम अवैज्ञानिक है। क्योंकि वह तो इतने करीब का रिश्ता हो जाएगा की जो बच्चे पैदा होंगे, बिलकुल गोबर गणेश होंगे। हां गोबर-गणेश चाहिए तो बात अलग हे।
लेकिन यह प्रश्न तुम्हारे भीतर इतना क्यों तुम्हें परेशान किए हुए है? इसमें जरूर कोई निजी मामला है, जिसको तुम्हारी कहने की हिम्मत नहीं है। और बात तुम बड़ी बहादुरी की कर रहे हो। बात ऐसी कर रह हो जैस कि मुझे चुनौती दे रहे हो इस प्रश्न को पूछने तुम पूना आए। बड़े शुद्ध धार्मिक आदमी मालूम पड़ते हो। ऋषि-महार्षियों में तुम्हारी गिनती होनी चाहिए।
थोड़ा सोचा होओ गे, तुम्हारी बैटी बदनाम होगी। कुछ न कुछ मामला गड़बड़ का है। और तुम चाहते हो कि मेरा सर्मथन मिल जाये। शायद इस लिए तुमने सन्यास लिया है।
तुम्हारा संन्यास झूठा और थोथा है। तुम यहां संन्यास लेने इसीलिए आ गय हो, मेरा सन्यास लेने, कि तुमको आशा होगी की मैं तो सब तरह की स्वतंत्रता देता हूं। इसलिए इस बात की भी स्वतंत्रता दे दूँगा।
ऐसे कुछ लोग है, एक सज्जन आ गए थे। वे इसीलिए संन्यास लिए कि उनको अपनी बहन से प्रेम है। संन्यास लेने के बाद……दोनों ने संन्यास ले लिया। फिर कहा कि अब आपको हम कह दें कि यह मेरी बहन है और सब लोग हमारे विरोध में है। इसलिए हम आपकी शरण आए है। इसलिए हमने संन्यास लिया है।
मैंने कहा: इसलिए संन्यास लेने की क्या जरूरत थी? अब यह संन्यास सिर्फ एक आवरण हुआ तुम्हें बचाने का। और तुम जाकर प्रचार करना कि मैं तुम्हारे समर्थन में हूं। मेरे दुश्मन मुझे जितना नुकसान पहुंचाते है। उससे ज्यादा नुकसान तुम तरह के लोग मुझे पहुंचाते है। तुम ही हो असली उपद्रव की जड़।
अब उस आदमी की इच्छा यह है कि मैं आशीर्वाद दे दूँ कि शादी हो जानी चाहिए बहन-भाई की। मैंने कहा-: यह तो गलत है। तुम चाहे संन्यास लो चाहे न लो मगर यह बात गलत है। और तुमने जिस कारण से संन्यास लिया यह तो बिलकुल ही गलत है। सिर्फ तुम आपने पाप को छिपाना चाहते हो—संन्यास की आड़ में।
लोग सोचते है कि मैं हर तरह की चीज के लिए राज़ी हो जाऊँगा। इस भूल में मत रहना। जरूर मैं स्वतंत्रता का पक्षपाती हूं। मुक्त यौन में भी लोग गलत अर्थ ले लेते है। मुक्त यौन का यह अर्थ नहीं होता, जो तुम्हारे मन में बैठा हुआ है। कुछ भारतीय यहां आते है—सिर्फ इसीलिए कि वे सोचते है यहां मुक्त यौन , तुम गलती में हो। यहां की सन्यासिनियों तुम्हारी इस तरह की पिटाई करेंगी कि तुम्हें जिंदगी भर भूलेगी नहीं। ये कोई भारतीय नारिया नहीं है कि घुंघट डाल कर और चुपचाप चला जाएंगी। कि कौन झगड़ा करे, कौन फसाद करे,कोई क्या कहेगा। यह तुम्हारी अच्छी तरह से पिटाई करेंगी। मुक्त यौन का यह अर्थ नहीं है।
मुझे रोज-रोज शिकायतें आती है। पाश्चात्य सन्यासिनियों की, कि भारतीय किसी तरह के लोग है। कोहनी ही मार देंगे कुछ नहीं तो। मौका मिल जाए तो धक्का ही लगा देंगे।
मैं उनसे कहता हूं: दया करों इन पर, ये ऋषि-मुनियों की संतान है। और अब ये बेचारे क्या करें, ऋषि-मुनि सब अमरीका चले गये। महर्षि महेश योगी, चित्रभानु, योगी भजन, सब ऋषि मुनि तो अमरीका चले गए संतान यहाँ छोड़ गए। उल्लू मर गए। औलाद छोड़ गए।
और ये ऋषि मुनि अमरीका क्यों चलें गए। ये बेचारे यहां बैठे-बैठे रहा तक रहे थे तुम्हारी ऊरवसियों कि मेनकाओं की। आती नहीं कोई, न जाने क्या हो इंद्रको नियम तो नहीं बदल दिया सो, उन उर्वशीयों के पास हॉलीवुड।
इस तरह की मूर्खतापूर्ण बातों को मेरा कोई समर्थन नहीं है। मां-बेटे के संबंध की बात ही नहीं उठती। ये भी तुम्हारे रूग्ण ओर दमित वासनाओं के कारण ये उपद्रव खड़े हो रहे है। नहीं तो कौन मां-बेटे को प्रेम करने की सूझेगी। किस बेटे के साथ मां यौन संबंध बनाना चाहेंगी। या कौन बेटा अपनी मां के साथ यौन-संबंध बनाना चाहेगा। या कौन पिता अपनी ही बैटी से यौन संबंध बनाना चाहेगा? जब सब तरफ से द्वार-दरवाजे बंद होते है और तुम्हारे जीवन में कहीं कोई निकास नहीं होता है, तो इस तरह की गलतियां शुरू होती हे। क्योंकि यह सुविधापूर्ण है। अब बेटी तो असहाय है। बाप के ऊपर निर्भर है, तुम उसे सता सकते हो। दूसरे की बेटी को छेड़खानी करके दिखाओं तो पड़ो गे मुसीबत में।
बिलकुल बुद्धि हीनता की बात तुम पूछ रहे हो। कारण न तो धार्मिक है मेरे विरोध का, न परंपरागत है, न संस्कारगत हे, सिर्फ वैज्ञानिक है। अगर तुम उत्सुक हो तो संतति-शस्त्र के विज्ञान को समझने की कोशिश करो। शास्त्र उपलब्ध है। विज्ञान ने बड़ी खोजें कर ली है। विज्ञान का सीधा सा सिद्धांत है: स्त्री और पुरूष के जीवाणु जितने दूर के हों, उतने ही बच्चे के लिए हितकर होगा—उतना ही बच्चा स्वस्थ होगा, सुंदर होगा, दीर्घजीवी होगा । प्रतिभाशाली होगा। और जितने करीब के होंगे उतनी ही लचर पचर होगा। दीन हीन होगा।
भारत की दीन हीनता में यह भी एक कारण है। भारत के लोच-पोच आदमियों में यह भी एक कारण है। क्योंकि जैन सिर्फ जैनों के साथ ही विवाह करेंगे। अब जैनों की कुल संख्या तीस लाख है। महावीर को मरे पच्चीस सौ साल हो गए। अगर महावीर ने तीस जोड़ों को संन्यास दिया होता तो तीस लाख की संख्या हो जाती। तीस जोड़े काफ़ी थे। तो अब जैनों का सारा संबंध जैनों से ही होगा। और जैनों में भी, श्वेतांबर का श्वेतांबर से और दिगंबर का दिगंबर से। और सब श्वेतांबर से नहीं तेरा पंथी का तेरा पंथी से और स्थानक वासी का स्थानक वासी से। और छोटे-छोटे टुकड़े है। संख्या हजारों में रह जाती है। और उन्हीं के भीतर गोल-गोल घूमते रहते है लोग। छोटे-छोटे तालाब है और उन्हीं के भीतर लोग बच्चे पैदा करते रहते है। इससे कचरा पैदा होता है। सारी दुनिया में सबसे ज्यादा कचरा इस भारत में है। फिर तुम रोते हो कि यह अब कचरे का क्यों पैदा हो रहा है। तुम खुद इस के जिम्मेदार हो।
ब्राह्मण सिर्फ ब्राह्मणों से शादी करेंगे। और वह भी सभी ब्राह्मणों से नहीं; कान्यकुब्ज ब्राह्मण कान्यकुब्ज से करेंगे। और देशस्थ -देशस्थ से, और कोंकणस्थ -कोंकणस्थ से। और स्वास्थ ब्राह्मण तो मिलते ही कहां हे। मुझे तो अभी तक नहीं मिला। कोई भी। और असल में, स्वस्थ हो उसी को ब्राह्मण कहना चाहिए। स्वयं में स्थित हो, वही ब्राह्मण है।
और यह जो भारत की दुर्गति है, उसमें एक बुनियादी कारण यह भी है कि यहां सब जातियां अपने-अपने धेरे में जी रही हे। यहीं बच्चे पैदा करना, कचड़ -बचड़ वही होती रहेगी। थोड़ा-बहुत बचाव करेंगे। मगर कितना बचाव करोगे। जिससे भी शादी करोगे। दो चार पाँच पीढ़ी पहले उससे तुम्हारे भाई-बहन का संबंध रहा होगा। दो चार पाँच पीढ़ी ज्यादा से ज्यादा कर सकते हो। इससे ज्यादा नहीं बचा सकते। जितना छोटा समाज होगा उतना बचाव करना कठिन हो जायेगा। जितना छोटा समाज होगा, उतनी संतति में पतन होगा। थोड़ा मुक्त होओ। ब्राह्मण को विवाह करने दो जैन से जैन को विवाह करने दो हरिजन से हरिजन को विवाह करेने दो मुसलमान से, मुसलमान को विवाह करने दो ईसाई से। तोड़ो ये सारी सीमाएं। निकालों एक बार इस कुप से। देखो फिर उँची संतति को।
और तुम सीमाएं तोड़ने की बात तो दुर, तुम और ही सुगम रास्ता बता रहे हो। गजब की बात बता रहे हो स्वामी शांता नंद सरस्वती जी। कि कहां जाना दूर और घर की बात घर में ही रखो। घर की संपदा घर में ही रखो। अपनी बेटी से ही शादी कर लो, कि अपनी मां से ही शादी कर लो। इस मूर्खतापूर्ण प्रश्न को पूछने तुम पूना आए हो? अब दे दिया मैंने उत्तर, अब हो गए तुम सफल, हुआ तुम्हारा जीवन कृतार्थ, अब जाओ भैया ! "
~ ओशो , रहिमन धागा प्रेम का, प्रश्न-पांचवां, प्रवचन—5
"मुक्त यौन-संबंध के अंतर्गत क्या पिता पुत्री ओर मां बेटे के बीच भी यौन संबंध हो सकता है? यदि नहीं क्यों नहीं?"
"यह प्रश्न उन्होंने इतनी बार पूछा है कि मुझे शक है, तुम्हें अपनी मां से यौन-संबंध करना है कि अपनी बेटी से, किससे करना चाहते हो। ये प्रश्न तुम ने इतनी बार क्यों पूछ रहे हो। और यही प्रश्न हेतु है उन्हें पूना लाने का। तो जरूर यह मामला निजी होना चाहिए। व्यक्तिगत होना चाहिए। किससे तुम्हें यौन संबंध करना हे—मां से कि अपनी बेटी से? सीधी-सीधी बात क्यों नहीं पूछते फिर, इसको इतना तात्विक रंग देने की क्या जरूरत है। कम से कम ईमानदार प्रश्न तो पूँछों इतनी ईमानदारी, इतना साहस तो होना चाहिए।
मां-बेटे का संबंध या बेटी और बाप का संबंध अवैज्ञानिक है। उससे जो बच्चे पैदा होंगे वे अपंग होंगे, लंगड़े होंगे। लूले होंगे। बुद्धिहीन होंगे। इसका कोई धर्मसे संबंध नहीं है। यह सत्य दुनिया के लोगों को बहुत पहले पता चल चुका है। सदियों से पता रहा है। विज्ञान तो अब इसाक वैज्ञानिक रूप दे रहा है। भाई बहन का संबंध भी अवैज्ञानिक है। इसका कोई नैतिकता से संबंध नहीं है। सीधी सी बात इतनी है कि भाई और बहन दोनों के वीर्य कण इतने समान होते है कि उनमें तनाव नहीं होता। उनमें खिंचाव नहीं होता। इसलिए उनसे जो व्यक्ति पैदा होगा, वह फुफ्फुस होगा; उसमें खिंचाव नहीं होगा, तनाव नहीं होगा, उसमें ऊर्जा नहीं होगी। जितने दूर का नाता होगा, उतना ही बच्चा सुंदर होगा। स्वस्थ होगा, बलशाली होगा। मेधावी होगा। इसलिए फिक्र की जाती रही कि भाई बहन का विवाह न हो। दूर संबंध खोजें जाते है। जिलों गोत्र का भी नाता न हो, तीन-चार पाँच पीढ़ियों का भी नाता न हो। क्योंकि जितने दूर का नाता हो, उतना ही बच्चे के भीतर मां और पिता के जो वीर्याणु और अंडे का मिलन होगा, उसमें दूरी होगी तो उस दूरी के कारण ही व्यक्तित्व में गरिमा होती है।
इसलिए मैं इस पक्ष में हूं कि भारतीय को भारतीय से विवाह नहीं करना चाहिए; जापनी से करे, चीनी से करे, तिब्बती से करे, इरानी से करे, जर्मन से करे, भारतीय से न करे। क्योंकि जब दूर ही करनी है जितनी दूर हो उतना अच्छा।
और अब तो वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो चुकी है बात। पशु-पक्षियों के लिए हम प्रयोग भी कर रहे है। लेकिन आदमी हमेशा पिछड़ा हुआ होता है। क्योंकि उसकी जकड़ रूढ़िगत होती है। अगर हमको अच्छी गाय की नस्ल पैदा करनी है तो हम बाहर से वीर्य-अणु बुलाते है। अंग्रेज सांड का वीर्य अणु बुलाते है। भारतीय गाय के लिए। और कभी नहीं सोचते कि गऊ माता के साथ क्या कर रहे हो तुम यह। गऊ माता और अंग्रेज पिता, शर्म नहीं आती। लाज-संकोच नहीं। मगर उतने ही स्वस्थ बच्चे पैदा होंगे। उतनी ही अच्छी नस्ल होगी।
इसलिए पशुओं की नसलें सुधरती जा रही है, खासकर पश्चिम में तो पशुओं की नसलें बहुत सुधर गई है। कल्पनातीत,साठ-साठ लीटर दूध देने वाली गायें कभी दूनिया में नहीं थी। और उसका कुल कारण यह है कि दूर-दूर के वीर्याणु को मिलाते जाते है। हर बार। आने वाले बच्चे और ज्यादा स्वास्थ और भी स्वारथ होते जाते है। कुत्ते की नसलों में इतनी क्रांति हो गई है कि जैसे कुत्ते कभी नहीं थे दुनियां में। रूस में फलों में क्रांति हो गई हे। कयोंकि फलों के साथ भी यही प्रयोग कर रहे है। आज रूस के पास जैसे फल है, दुनिया में किसी के पास नहीं है। उनके फल बड़े है, ज्यादा रस भरे है, ज्यादा पौष्टिक हे। और सारी तरकीब एक है: जितनी ज्यादा दूरी हो।
यह सीधा सा सत्य आदिम समाज को भी पता चल गया था। मगर स्वामी शांता नंद सरस्वती को अभी तक पता नहीं है। और वे समझते है कि बड़े आधुनिक आदमी है, रूढ़ियों के बड़े विरोधी है। इसलिए भाई-बहन का विवाह का निषिद्ध था। निषिद्ध रहना चाहिए। असल में चचेरे भाई बहनों से भी विवाह निषिद्ध होना चाहिए। मुसलमानों में होता है, ठीक नहीं है। दक्षिण भारत में होता है। ठीक नहीं है। अवैज्ञानिक है। और मां-बेटे का विवाह तो एकदम ही मूढता पूर्ण हे, एक दम अवैज्ञानिक है। क्योंकि वह तो इतने करीब का रिश्ता हो जाएगा की जो बच्चे पैदा होंगे, बिलकुल गोबर गणेश होंगे। हां गोबर-गणेश चाहिए तो बात अलग हे।
लेकिन यह प्रश्न तुम्हारे भीतर इतना क्यों तुम्हें परेशान किए हुए है? इसमें जरूर कोई निजी मामला है, जिसको तुम्हारी कहने की हिम्मत नहीं है। और बात तुम बड़ी बहादुरी की कर रहे हो। बात ऐसी कर रह हो जैस कि मुझे चुनौती दे रहे हो इस प्रश्न को पूछने तुम पूना आए। बड़े शुद्ध धार्मिक आदमी मालूम पड़ते हो। ऋषि-महार्षियों में तुम्हारी गिनती होनी चाहिए।
थोड़ा सोचा होओ गे, तुम्हारी बैटी बदनाम होगी। कुछ न कुछ मामला गड़बड़ का है। और तुम चाहते हो कि मेरा सर्मथन मिल जाये। शायद इस लिए तुमने सन्यास लिया है।
तुम्हारा संन्यास झूठा और थोथा है। तुम यहां संन्यास लेने इसीलिए आ गय हो, मेरा सन्यास लेने, कि तुमको आशा होगी की मैं तो सब तरह की स्वतंत्रता देता हूं। इसलिए इस बात की भी स्वतंत्रता दे दूँगा।
ऐसे कुछ लोग है, एक सज्जन आ गए थे। वे इसीलिए संन्यास लिए कि उनको अपनी बहन से प्रेम है। संन्यास लेने के बाद……दोनों ने संन्यास ले लिया। फिर कहा कि अब आपको हम कह दें कि यह मेरी बहन है और सब लोग हमारे विरोध में है। इसलिए हम आपकी शरण आए है। इसलिए हमने संन्यास लिया है।
मैंने कहा: इसलिए संन्यास लेने की क्या जरूरत थी? अब यह संन्यास सिर्फ एक आवरण हुआ तुम्हें बचाने का। और तुम जाकर प्रचार करना कि मैं तुम्हारे समर्थन में हूं। मेरे दुश्मन मुझे जितना नुकसान पहुंचाते है। उससे ज्यादा नुकसान तुम तरह के लोग मुझे पहुंचाते है। तुम ही हो असली उपद्रव की जड़।
अब उस आदमी की इच्छा यह है कि मैं आशीर्वाद दे दूँ कि शादी हो जानी चाहिए बहन-भाई की। मैंने कहा-: यह तो गलत है। तुम चाहे संन्यास लो चाहे न लो मगर यह बात गलत है। और तुमने जिस कारण से संन्यास लिया यह तो बिलकुल ही गलत है। सिर्फ तुम आपने पाप को छिपाना चाहते हो—संन्यास की आड़ में।
लोग सोचते है कि मैं हर तरह की चीज के लिए राज़ी हो जाऊँगा। इस भूल में मत रहना। जरूर मैं स्वतंत्रता का पक्षपाती हूं। मुक्त यौन में भी लोग गलत अर्थ ले लेते है। मुक्त यौन का यह अर्थ नहीं होता, जो तुम्हारे मन में बैठा हुआ है। कुछ भारतीय यहां आते है—सिर्फ इसीलिए कि वे सोचते है यहां मुक्त यौन , तुम गलती में हो। यहां की सन्यासिनियों तुम्हारी इस तरह की पिटाई करेंगी कि तुम्हें जिंदगी भर भूलेगी नहीं। ये कोई भारतीय नारिया नहीं है कि घुंघट डाल कर और चुपचाप चला जाएंगी। कि कौन झगड़ा करे, कौन फसाद करे,कोई क्या कहेगा। यह तुम्हारी अच्छी तरह से पिटाई करेंगी। मुक्त यौन का यह अर्थ नहीं है।
मुझे रोज-रोज शिकायतें आती है। पाश्चात्य सन्यासिनियों की, कि भारतीय किसी तरह के लोग है। कोहनी ही मार देंगे कुछ नहीं तो। मौका मिल जाए तो धक्का ही लगा देंगे।
मैं उनसे कहता हूं: दया करों इन पर, ये ऋषि-मुनियों की संतान है। और अब ये बेचारे क्या करें, ऋषि-मुनि सब अमरीका चले गये। महर्षि महेश योगी, चित्रभानु, योगी भजन, सब ऋषि मुनि तो अमरीका चले गए संतान यहाँ छोड़ गए। उल्लू मर गए। औलाद छोड़ गए।
और ये ऋषि मुनि अमरीका क्यों चलें गए। ये बेचारे यहां बैठे-बैठे रहा तक रहे थे तुम्हारी ऊरवसियों कि मेनकाओं की। आती नहीं कोई, न जाने क्या हो इंद्रको नियम तो नहीं बदल दिया सो, उन उर्वशीयों के पास हॉलीवुड।
इस तरह की मूर्खतापूर्ण बातों को मेरा कोई समर्थन नहीं है। मां-बेटे के संबंध की बात ही नहीं उठती। ये भी तुम्हारे रूग्ण ओर दमित वासनाओं के कारण ये उपद्रव खड़े हो रहे है। नहीं तो कौन मां-बेटे को प्रेम करने की सूझेगी। किस बेटे के साथ मां यौन संबंध बनाना चाहेंगी। या कौन बेटा अपनी मां के साथ यौन-संबंध बनाना चाहेगा। या कौन पिता अपनी ही बैटी से यौन संबंध बनाना चाहेगा? जब सब तरफ से द्वार-दरवाजे बंद होते है और तुम्हारे जीवन में कहीं कोई निकास नहीं होता है, तो इस तरह की गलतियां शुरू होती हे। क्योंकि यह सुविधापूर्ण है। अब बेटी तो असहाय है। बाप के ऊपर निर्भर है, तुम उसे सता सकते हो। दूसरे की बेटी को छेड़खानी करके दिखाओं तो पड़ो गे मुसीबत में।
बिलकुल बुद्धि हीनता की बात तुम पूछ रहे हो। कारण न तो धार्मिक है मेरे विरोध का, न परंपरागत है, न संस्कारगत हे, सिर्फ वैज्ञानिक है। अगर तुम उत्सुक हो तो संतति-शस्त्र के विज्ञान को समझने की कोशिश करो। शास्त्र उपलब्ध है। विज्ञान ने बड़ी खोजें कर ली है। विज्ञान का सीधा सा सिद्धांत है: स्त्री और पुरूष के जीवाणु जितने दूर के हों, उतने ही बच्चे के लिए हितकर होगा—उतना ही बच्चा स्वस्थ होगा, सुंदर होगा, दीर्घजीवी होगा । प्रतिभाशाली होगा। और जितने करीब के होंगे उतनी ही लचर पचर होगा। दीन हीन होगा।
भारत की दीन हीनता में यह भी एक कारण है। भारत के लोच-पोच आदमियों में यह भी एक कारण है। क्योंकि जैन सिर्फ जैनों के साथ ही विवाह करेंगे। अब जैनों की कुल संख्या तीस लाख है। महावीर को मरे पच्चीस सौ साल हो गए। अगर महावीर ने तीस जोड़ों को संन्यास दिया होता तो तीस लाख की संख्या हो जाती। तीस जोड़े काफ़ी थे। तो अब जैनों का सारा संबंध जैनों से ही होगा। और जैनों में भी, श्वेतांबर का श्वेतांबर से और दिगंबर का दिगंबर से। और सब श्वेतांबर से नहीं तेरा पंथी का तेरा पंथी से और स्थानक वासी का स्थानक वासी से। और छोटे-छोटे टुकड़े है। संख्या हजारों में रह जाती है। और उन्हीं के भीतर गोल-गोल घूमते रहते है लोग। छोटे-छोटे तालाब है और उन्हीं के भीतर लोग बच्चे पैदा करते रहते है। इससे कचरा पैदा होता है। सारी दुनिया में सबसे ज्यादा कचरा इस भारत में है। फिर तुम रोते हो कि यह अब कचरे का क्यों पैदा हो रहा है। तुम खुद इस के जिम्मेदार हो।
ब्राह्मण सिर्फ ब्राह्मणों से शादी करेंगे। और वह भी सभी ब्राह्मणों से नहीं; कान्यकुब्ज ब्राह्मण कान्यकुब्ज से करेंगे। और देशस्थ -देशस्थ से, और कोंकणस्थ -कोंकणस्थ से। और स्वास्थ ब्राह्मण तो मिलते ही कहां हे। मुझे तो अभी तक नहीं मिला। कोई भी। और असल में, स्वस्थ हो उसी को ब्राह्मण कहना चाहिए। स्वयं में स्थित हो, वही ब्राह्मण है।
और यह जो भारत की दुर्गति है, उसमें एक बुनियादी कारण यह भी है कि यहां सब जातियां अपने-अपने धेरे में जी रही हे। यहीं बच्चे पैदा करना, कचड़ -बचड़ वही होती रहेगी। थोड़ा-बहुत बचाव करेंगे। मगर कितना बचाव करोगे। जिससे भी शादी करोगे। दो चार पाँच पीढ़ी पहले उससे तुम्हारे भाई-बहन का संबंध रहा होगा। दो चार पाँच पीढ़ी ज्यादा से ज्यादा कर सकते हो। इससे ज्यादा नहीं बचा सकते। जितना छोटा समाज होगा उतना बचाव करना कठिन हो जायेगा। जितना छोटा समाज होगा, उतनी संतति में पतन होगा। थोड़ा मुक्त होओ। ब्राह्मण को विवाह करने दो जैन से जैन को विवाह करने दो हरिजन से हरिजन को विवाह करेने दो मुसलमान से, मुसलमान को विवाह करने दो ईसाई से। तोड़ो ये सारी सीमाएं। निकालों एक बार इस कुप से। देखो फिर उँची संतति को।
और तुम सीमाएं तोड़ने की बात तो दुर, तुम और ही सुगम रास्ता बता रहे हो। गजब की बात बता रहे हो स्वामी शांता नंद सरस्वती जी। कि कहां जाना दूर और घर की बात घर में ही रखो। घर की संपदा घर में ही रखो। अपनी बेटी से ही शादी कर लो, कि अपनी मां से ही शादी कर लो। इस मूर्खतापूर्ण प्रश्न को पूछने तुम पूना आए हो? अब दे दिया मैंने उत्तर, अब हो गए तुम सफल, हुआ तुम्हारा जीवन कृतार्थ, अब जाओ भैया ! "
~ ओशो , रहिमन धागा प्रेम का, प्रश्न-पांचवां, प्रवचन—5
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